कामकाजी महिलाओं के बच्चे ज्यादा जिम्मेदार, इस रिपोर्ट में किया दावा, देखें राज्यों की स्थिति

जयपुर. विभिन्न शोध और मनोवैज्ञानिक अध्ययनों का दावा है कि कामकाजी महिलाओं के बच्चों में स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी की भावना जल्दी विकसित होती है। जिन बच्चों की माताएं कामकाजी होती हैं, वे न केवल जल्दी समझदार बनते हैं, बल्कि व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में अधिक सफल भी होते हैं।
भारतीय श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, महिलाओं की बढ़ती कार्यक्षमता का प्रभाव बच्चों पर सकारात्मक रूप से पड़ रहा है, जिससे वे समय प्रबंधन और नेतृत्व कौशल जल्दी सीख रहे हैं। वहीं, एनसीईआरटी (2023) के अध्ययन में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में कामकाजी माताओं के 78 फीसदी बच्चे अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल और घरेलू कामों में हाथ बंटाते हैं।

यूपी-बिहार में सबसे कम भागीदारी… भारत में कामकाजी महिलाओं का राष्ट्रीय औसत 27.2 फीसदी है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 32.8 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 21.1 फीसदी महिलाएं कार्यरत हैं। छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, और मिजोरम जैसे राज्यों में महिला श्रम भागीदारी दर सबसे अधिक 38 से 45 फीसदी तक है। बिहार और उत्तर प्रदेश में यह भागीदारी सबसे कम 8.4 और 11.5 फीसदी है।
कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत
राज्य ग्रामीण शहरी औसत (%)
बिहार 9.5 6.8 8.4
उत्तरप्रदेश 12.8 10.2 11.5
राजस्थान 28.7 18.3 24.5
मध्यप्रदेश 34.2 21.7 28.1
झारखंड 26.5 18.0 22.8
छत्तीसगढ़ 45.1 30.5 38.9
गुजरात 22.6 15.9 19.3
महाराष्ट्र 34.9 27.8 31.4
कर्नाटक 35.7 28.1 31.9
तमिलनाडु 37.2 29.5 33.4
स्रोत: राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे (2024)
भारतीय बच्चों में क्या बदलाव
स्वतंत्र निर्णय क्षमता: कामकाजी माताओं के बच्चों को जल्दी यह समझ आ जाता है कि छोटे-बड़े निर्णय कैसे लेने हैं।
बेहतर समय प्रबंधन: बच्चे समय प्रबंधन में कुशल होते हैं और समय की कीमत समझते हुए अपने निर्णय लेते हैं।
भावनात्मक समझ: बच्चे सामाजिक व भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं, जिससे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है।