पहली अकाउंटेंट बन देश में तहलका मचा दिया
1933 में पहली अकाउंटेंट बन कर आर शिवाभोगम ने देशभर में तहलका मचा दिया। उनकी इस पहल ने महिलाओं के लिए इस पेशे में एक नई राह खोल दी।
हमारे देश में इस वक्त कुल 3 लाख 90 हजार सीए प्रोफेशनल्स हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट्स हैं। इनकी संख्या लगभग 1,25,000 है। मात्र 6 साल पहले यानी 2018 में इनकी संख्या सिर्फ 64,685 थी। यानी 6 वर्षों में इनकी संख्या दोगुना हो गई ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1933 तक देश में एक भी महिला सीए नहीं थी क्योंकि इससे पहले इस पेशे को महिलाओं के लिए माना ही नहीं गया। 1933 में इस बैरियर को तोड़ा देश की पहली चार्टर्ड अकाउंटेंट आर शिवाभोगम ने। चेन्नई के लेडी वेलिंगटन स्कूल से शिक्षा लेने के बाद उन्होंने क्वीन मैरी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उन्हीं दिनों वे महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी शामिल हुईं। पकड़े जाने पर उन्हें 1 साल की जेल हुई। जेल में रहते हुए शिवाभोगम ने एक नया निर्णय लिया, चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का। जेल से रिहा होते ही उन्होंने अकाउंटेंसी में डिप्लोमा कोर्स के लिए पंजीकरण करवा लिया।
1933 में पहली अकाउंटेंट बन कर उन्होंने देशभर में तहलका मचा दिया। उनकी इस पहल ने महिलाओं के लिए इस पेशे में एक नई राह खोल दी। महिलाएं उनकी इस उपलब्धि से सुखद आश्चर्य महसूस कर रही थीं। शिवाभोगम एक अकाउंटेंट के रूप में स्वतंत्र प्रैक्टिस करना चाहती थीं, मगर ब्रिटिश राज का कानून था कि जो व्यक्ति जेल में सजा काट चुका है, वह अकाउंटेंट के रूप में प्रैक्टिस नहीं कर सकता। आर शिवाभोगम ने इस कानून का प्रतिवाद करते हुए एक याचिका दायर की। अदालत ने उनके पक्ष में फैसला दिया ।
1937 में उन्होंने स्वतंत्र अकाउंटेंट के रूप में प्रैक्टिस शुरू की। 1950 में जब इकाई की स्थापना हुई, तो वे इसकी सदस्य और फेलो बन गईं। वे इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट की दक्षिण भारत क्षेत्रीय परिषद की पहली महिला अध्यक्ष भी बनीं। समाजसेवी और परोपकारी स्वभाव की शिवाभोगम ने बिना पारिश्रमिक लिए कई सामाजिक संगठनों की ऑडिट की। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक सहित विभिन्न सरकारी संस्थानों में भी ऑडिट किया। महिला शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। वे महिला सशक्तीकरण की पक्षधर रहीं। अपने पिता के नाम पर उन्होंने खूब सारी छात्रवृतियां भी दीं।
गांधीवादी विचारों पर चलने वाली शिवाभोगम आजीवन यानी मृत्यु के दिन तक 14 जून 1966 तक सिर्फ खादी वस्त्र ही पहनती रहीं। स्वदेशी लीग के हिस्से के रूप में उन्होंने खादी आधारित ब्लॉक प्रिंटिंग सीखने से लेकर सक्रिय रूप से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने तक काम किया। 1956 में उन्होंने आईसीएई द्वारा आयोजित अंतिम परीक्षा को प्रथम प्रयास में उत्तीर्ण करने वाली सर्वश्रेष्ठ महिला परीक्षार्थी को सोने के लॉकेट के रूप में पुरस्कार देने की शुरुआत की। कोई भी महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट आज आर शिवाभोगम का नाम गर्व से लेती है।