जेंडर गेप कम करने ऐसा काम किया कि बदल गई 40 गांव की सूरत
भरी पंचायत में एक महिला ने कहा, मेरा पति मुझे सेक्चुअली सेटिसफाइड नहीं कर सकता। मैं इसके साथ नहीं रह सकती।
रायपुर। छत्तीसगढ़ के एक गांव में भरी पंचायत में एक महिला ने कहा कि मेरी शादी जिस व्यक्ति से हुई है वो मुझे सेक्चुअली सेटिसफाइड नहीं कर सकता। मैं इसके साथ नहीं रह सकती। तब पंचायत ने उसकी बात को समझा और कहा कि तुम किसी और से शादी कर सकती हो। यह परिवर्तन की ही लहर थी।
महिला नीति की बात करते हुए उर्मीमाला कहती हैं कि राष्ट्रीय महिला नीति बनी है साथ ही कई राज्यों में इसे फॉलो किया जा रहा , लेकिन छत्तीसगढ़ में महिला नीति बनी ही नहीं। बीते 4 सालों में ऑक्सफेम इंडिया छत्तीसगढ़ के 40 गांव में जेण्डर गेप कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसकी प्रोग्राम आफिसर रह चुकी उर्मीमाला सेनगुप्ता ने अपनी टीम के साथ 4 साल पहले प्रदेश के दो जिलों जांजगीर चांपा और गरियाबंद के 40 गांव में काम शुरू किया और 32 सौ लोगों की सोच महिलाओं की प्रति सकारात्मक की। अब इन गांवों के पुरूष महिलाओं द्वारा घर में किए जा रहे कार्यो के महत्व को समझ रहे हैं, वहीं गांव के पंच-सरपंच उन्हें महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल कर रहे है।
उर्मीमाला ने बताया कि महिलाओं के हक की बात करना और पुरूष वर्ग की सोच को बदलना बहुत आसान काम नहीं था। एक
साल तक तो हम कोशिश ही करते रहे। हम महिलाओं की मीटिंग करते थे तो वे घरों से निकल ही नहीं पाती थी फिर हमने चार ग्रुप में कम्युनिटी को बांटा और महिलाओं, किशोरियों, किशोर और पुरूषों के चार अलग-अलग ग्रुप बनाए। और जब पुरूषों को मीटिंग के लिए बुलाने लगे तो वे महिलाओं को भी मीटिंग में आने देने लगे। इसका असर भी दिखने लगा। जांजगीर चापा के डबरा ब्लॉक की एक किशोरी ने खुद अपनी शादी रोकी। इसी तरह 10 किशोरियों ने अपनी शादी रोकी।
जब हम पुरूषों की मीटिंग लिया करते थे तो वे घर जाकर अपनी बहन, पत्नी और मां के प्रति सकारात्मक व्यवहार करते थे। पत्नी को बाहर घुमाने ले जाते थे। जब महिलाएं हमारी मीटिंग में आती थी तो वे हमें बताती थी कि अब हमें घर में कुछ महत्व मिलने लगा है।
छुआछूत को दूर कर समानता की अलख जगाई
उर्मीमाला कहती हैं कि हमने डबरा गांव में जात-पात की खाई पाटी है। पहले डबरा ब्लॉक के एक गांव में नवरात्री में सभी से चंदा लिया जाता था, लेकिन पूजा में ऊंची जाति के लोग शामिल होते थे। हमने जब काम करना शुरू किया तो हमें यह परिवर्तन दिखा और गांव के युवाओं ने यह संकल्प लिया कि हम सभी जात के लोग इसमें शामिल होंगे। माता का भोग पहले ब्राह्मण और पटेल जाति के लोग बनाते थे, लेकिन अब सारी जाति के लोग माता का भोग बनाने लगे।
पुरूष महिलाओं के काम को देने लगे महत्व
हमने महिलाओं के काम को महत्व दिलाने के लिए पुरूषों के साथ कई प्रैक्टिकल किए और उसके साथ ही महिलाओं को अवेयर किया कि उनके अधिकार क्या है। गांवों में संडे को पुरूष खेत नहीं जाते, लेकिन महिलाएं जाती थी। फिर महिलाओं ने कहा कि हम भी एक दिन छुट्टी कर सकते है।