बस्तर की निशा कला को सहेजकर शिल्पकारों को दे रही मंच
ऑकर स्टूडियों सहेज रहा बस्तर आर्ट
रायपुर। बस्तर की रहने वाली 26 साल की निशा बोधरा पेशे से आर्किटेक्चर है और चार हजार साल पुरानी ढोकरा शिल्पकला को बचाने की मुहीम में लगी है, वो ढोकरा शिल्प को विश्व पटल पर लाकर शिल्पकारों की आय में इजाफा कर रही है। 2 साल पहले निशा ने ऑकर स्टूडिओं की शुरुआत एक शिल्पकार के साथ की थी और आज उनके साथ 20 शिल्पकार जुड़े हुए है। वो युवाओं को ढोकरा शिल्प बनाने का प्रशिक्षण भी देती हैं।
किसी समय प्राचीन ढोकरा कला पूरे देश में फैली हुई थी, लेकिन अब ये देश के कुछ ही हिस्सों में सिमटकर रह गई है जहां इस कला में उस स्थान की शैली दिखाई पड़ती है। ये धातु कला अब झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाक़ों तक ही सीमित रह गई है।
कोंडागांव और बस्तर में है सैकड़ों परिवार
इतिहास में मोहनजोदड़ो में खुदाई में मिली डांसिंग गर्ल की कांस्य प्रतिमा ढोकरा शिल्प की थी और बस्तर में आज भी उस कला को जिंदा रखने की कोशिश कोंडागांव और बस्तर के शिल्पकारों द्वारा की जा रही है। इनमें युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली 26साल की निशा बोथरा पेशे से आर्किटेक्चर है, निशा ने 2 साल तक पूरे बस्तर को समझा, ढोकरा शिल्प बनाना सीखा और अपना ऑकर स्टूडिओं (मिट्टी ) बना डाला। अब ढोकरा आर्ट के शिल्पकारों के साथ अन्य शिल्पकार भी जुड़ रहे है। निशा उन्हें मार्केट दिलाने के साथ ही टेक्निकली भी मजबूत कर रही है।
दे रही नए आइडिया
ढोकरा शिल्प में तांबे की भारी मूर्तिया बनती है, लेकिन निशा ने इन शिल्पकारों को कम वजन की मूर्तियों, यूटिलिटी की चीजे, नेक पीस, कैंडल स्टैंड, ब्रेसलेट आदि बनाने का आइडया दिया। इससे हुआ यह कि शिल्पकार आधा किलो तांबा में जहां एक भारी मूर्ति बनाते थे, वहीं अब वे मूर्ति और यूटिलिटी की कम वजन की चीजें बनाने लगे, जिससे इन शिल्पकारों की आय भी बढ़ी है।
ढोकरा बैल की डिमांड ज्यादा
बस्तर की ढोकरा कलाकृतियों में ढोकरा सांड या बैल सबसे प्रसिद्ध मूर्ति मानी जाती है। छत्तीसगढ़ की ढोकरा शैली में विशेष लंबी मानव आकृतियां बनती हैं। इसके अलावा आदिवासी और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं। इस कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर जीवित करने के लिये संगठनों, राज्य सरकारों और कई निजी कंपनियों ने प्रयास किये हैं
निशा कहती है कि समय की मांग के अनुसार आज देवी-देवताओं के अलावा ऐश ट्रे, दरवाज़ों के नॉब और हैंडल, मानव तथा जानवरों की मूर्तियां, रसोईघर के सामान जैसे छोटे बर्तन, हैंगर, ट्रिंकेट ट्रे और प्रसिद्ध लोगों की मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं।