डिप्रेशन को मात देकर आस्था बनी शहर की पहली फिल्म फोटोग्राफर
रायपुर। जीवन में अचानक से कोई बड़ी समस्या सामने आ जाए तो हर व्यक्ति घबरा जाता है। मामला यदि जीनम साथी से जुड़ा हो तो समझ में ही नहीं आता है कि आगे जीवन कैसे गुजरेंगा , घर का खर्च कैसे चलेगा। अमूमन इन हालतों में हर जब व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आता है तो वो डिपरेशन में चला जाता है कुछ ऐसा ही हुआ आस्था दवे के साथ , जब पति की असमय मौत हुई तो उसके लिए मानों दुनिया के हर दरवाजे बंद हो गए थे। पूरा एक साल डिप्रेशन में ही गुजर गया कि किसी का साथ नहीं है जीवन कैंसे कटेगा, क्या करे। इन हालातों से निकलने के लिए पहले खुद को संभाला, क्योंकि घर में बूढ़े मां बाप और एक बिटिया को संभालना था। आखिर आस्था ने फैसला किया कि अब घर की देहरी लांघनी होगी और काम करना होगा। आस्था पहले फोटोग्राफी स्टूडियों संभाला करती थी। उन्हें एडिटिंग का तो शौक था लेकिन फोटोग्राफी नहीं की थी। फोटोग्राफी की बारीकियों को जानती थी बस उसी को निखारने के लिए वो फील्ड में उतरी और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने इसी काम के चलते उसे शहर की पहली महिला फोटोग्राफर का टाइटल मिला गया।
14 साल तक स्टूडियों संभाला था
आस्था बताती है कि जब पति थे तो उस समय मैं फोटो स्टूडियों में बैठा करती थी। 14 साल तक मैंने फोटो स्टूडियों को संभाला है। मुझे एडिटिंग भी आ जाती थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। दो साल पहले पति की असमय मौत हो गई। फील्ड फोटोग्राफी का कोई अनुभव नहीं था। मैंने वेडिंग इवेंट से इसकी शुरुआत की। जब लोगों को मेरा काम पसंद आने लगा तो लोग खुद से कॉन्टेक्ट करने लगे। काम से काम मिलने लगा। अब मैं हर तरह की फोटोग्राफी करने लगी हूं।
जिम्मेदारियों से मिलती है हिम्मत
जिम्मेदारियां आपको मजबूत बनाती है। मेरे पैरेंट्स और बिटिया की जिम्मेदारी मुझ पर है जब भी मैं किसी वजह से निराश हो जाऊं तो इन तीनों का चेहरा मेरे सामने आ जाता है और मैं सकारात्मक दिशा की और मुड़ जाती हूं जिससे मुझे भरपूर उर्जा मिलती है। मैं मानती हूं कि चुनौतियों का सामना करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
होती थी झिझक
किसी भी नए काम में आपको कुछ न कुछ दिक्कत आती ही है। जब मैं फोटोग्राफी का काम लेने फील्ड पर जाती थी तो शुरुआती दिनों में झिझक महसूस होती थी। मुझे लगता था कि कोई मुझ पर कैसे भरोसा करेगा क्योंकि उसने तो मेरा काम देखा ही नहीं है। लेकिन मुझे खुद पर बहुत ज्यादा यकीन था। यही वजह थी कि मैं जिससे भी मिलती उन्हें अपने काम और व्यवहार से सकारात्मक बना ही लेती थी