आदिवासी पोखन ने 50 से अधिक बच्चियों को पहुंचाया स्कूल
पोखन ने खेती किसानी को न चुन कर लड़कियों और महिलाओं के लिए काम करना उचित समझा
धमतरी के सरईभदर गांव की रहने वाली पोखन, आदिवासी समुदाय से हैं और उसके समुदाय में लड़कियां शिक्षा तो ग्रहण करती है लेकिन 10 वीं या 12 वीं तक पढऩे के बाद खेती किसानी के काम से लग जाती है, लेकिन पोखन ने खेती किसानी को न चुन कर लड़कियों और महिलाओं के लिए काम करना उचित समझा।पोखन ने छुरा ब्लॉक के 8 से अधिक गांव की महिलाओं को नए तरीके से खेती करना सिखाया। लुप्त हो चुकी कोदो(चावल) की खेती कराकर महिलाओं को रोजगार से जोड़ा। इनमें से कुछ महिलाओं को कोदो की खेती के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। आज इन गांवों में महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं।
पोखन ने न सिर्फ खुद पढ़ाई की बल्कि 50 से अधिक लड़कियों को स्कूल की दहलीज तक पहुंचाया और 15 लड़कियों की फिर से स्कूल की पढ़ाई शुरू कराई। इसके साथ ही 8 से अधिक गांव की महिलाओं को उनके अधिकारों से रूबरू कराया। कई महिलाओं को घरेलू हिंसा के शिकार होने पर न्याय भी दिलाया।
स्नातक तक की पढ़ाई की थी
पोखन जब 18 साल की थी तो धमतरी में ही लोक आस्था सेवा संस्थान से जुड़ी और संस्थान की लता नेताम ने पोखन की रूचि देखकर उसे महिलाओं के लिए काम करने के लिए तैयार किया। संस्थान ने ही उसे स्नातक तक की पढ़ाई कराई। अपनी पढ़ाई के दौरान पोखन गरियाबंद जिले के छुरा ब्लाक के टोनही डबरी गांव में काम करने लगी और वहां 15 ऐसी लड़कियां जो स्कूल छोड़ चुकी थी उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया और उनकी पढ़ाई शुरू कराई।
-8 गांव की 65 महिलाओं को दिलाया
रोजगार पोखन ने छुरा ब्लॉक के 8 से अधिक गांव की महिलाओं को नए तरीके से खेती करना सिखाया। लुप्त हो चुकी कोदो(चावल) की खेती कराकर महिलाओं को रोजगार से जोड़ा। इनमें से कुछ महिलाओं को कोदो की खेती के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। आज इन गांवों में महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं। –
महिलाओं को जागरूक किया
पोखन ने जहां एक और महिलाओं को रोजगार से जोड़ा वहीं कई महिलाओं को घरेलू हिंसा से भी बचाया और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाया। ग्राम सभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई। एक समय तो ऐसा भी आया कि गांव वाले उनके विरोध में उतर गए। उस समय गांव की उन्हीं महिलाओं ने साथ दिया। अब पोखन की शादी हो चुकी है, लेकिन शादी के बाद भी वह अपने इस कार्य में लगी है और गांव की महिलाओं और बेटियों को साक्षर करने के साथ ही आत्मनिर्भर बना रही है।