पूरे प्रदेश में गढक़लेवा के नवाचार के साथ पहुचांए पारंपरिक व्यजंन
बीते 18 सालों से राजधानी की सरिता शर्मा अपनी छोटी सी दुकान के जरिए छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पकवानों और व्यंजनों का स्वाद लोगों को करा रही हैं। साल 2016 में सरिता के ही मोनिषा महिला स्वसहायता समूह ने राज्य सरकार की मदद से प्रदेश का पहला गढक़लेवा राजधानी में खोला और इन 6 सालों में छत्तीसगढ़ी पकवानों के नवाचार पूरे प्रदेश में खुल गए, लेकिन राजधानी का गढक़लेवा पूरे प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। पहले यहां पर 15 से 20 पकवान बनते थे, लेकिन अब 50 पकवान बन रहे है वो भी नए स्वाद के साथ ।
समूह की अध्यक्ष सरिता कहती हैं कि वैसे तो गढक़लेवा में चीला और फरा ही पहली पसंद होती है, लेकिन हमने फरा को नया रूप दिया और दूध फरा बनाने लगे है। उसी तरह माड़ा पीठा पहले नमकीन बनता था अब मीठा भी बनने लगा है।
मुख्यमंत्री ने दिया सहयोग
सरिता कहती हैं कि हमारे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पारंपरिक व्यंजनों को इतना बढ़ावा दिया कि, आज मेरे ही एक से 10 समूह बन गए और महिलाओं को खाने से लेकर सिलाई-कढ़ाई के सारे कामों में रोजगार मिलने लगा। उन्हीं के जरिए बोरे -बासी की शुरुआत की गई और अब गढक़लेवा में रोजाना बोरे-बासी मिलता है।
गढक़लेवा बना पहचान
हमारे तीज-त्योहार के हिसाब से जो पारंपरिक व्यंजन बनते है वहीं हमारे पकवान होते है और यह सारे पकवान एक ही छत के नीचे मिलने लगे। इसे ही गढक़लेवा का नाम दिया है। जब हमने गढक़लेवा खोला था तो हमारे साथ 12 महिलाएं थी और एक ही समूह था, लेकिन अब 10 समूह और 150 महिलाएं है जो पूरे प्रदेश में पारंपरिक पकवानों की खुशबू फैला रही है। साथ ही सिलाई-कढ़ाई, कपड़ों की मार्केटिंग, पापड़ बिजौरी और अचार का काम पूरे प्रदेश में कर रही है। एक समूह राजिम में रेड़ी-टू-ईट का काम करता है। राजधानी में पंडरी, और नया रायपुर में मंत्रालय तक पकवानों की खुशबू पहुंचती है।
ठंड में मिलता है बोरे-बासी
वैसे बोरे-बासी गर्मियों में खाया जाता है, लेकिन गढक़लेवा में ठंड में भी बोरे-बासी मिलता है और लोग बूहुत चाव से इसे खाते भी है। हमारे यहां सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक पकवानों की खुशबू महकती रहती है और लोग बहुत चाव से पकवानों का लुफ्त उठाते है।