पुरूष जब महिलाओं की महावारी पर बात करते है, तो लगता है कुछ तो बदल रहा है
जब देखा कि महिलाएं अपनी प्रोडक्टिविटी को छुपाती है, तो बना दिया सुखीभव
पुरूष जब महिलाओं की महावारी पर बात करते है, तो लगता है कुछ तो बदल रहा है। 5 सालों में लगभग 2 लाख महिलाओं को किया जागरूक
रायपुर। महिलाओं की प्रोडक्टिविटी पर महिलाएं खुलकर बात नहीं करती, सामाजिक दायरा उसे इस पर बात करने से रोकता है, लेकिन इन्हीं महिलाओं के लिए एक पुरूष सामने आकर काम करता है। वो महिलाओं की महावारी पर बात करता है जिसे करने में महिलाएं शर्माती है। बीते 5 साल में तीन राज्यों में लगभग 2 लाख महिलाओं को अवेयर किया। बंगलुरू के 36 साल के दिलीप पट्टवाला अब पुरूषों को बता रहे है कि महिलाओं की महावारी एक सामान्य प्रक्रिया है और इस पर खुलकर बात होनी चाहिए, जिससे महिलाओं को स्वस्थ शरीर मिले।
अभी बदलाव नहीं हुआ है बहुत काम करना है
दिलीप कहते हैं कि जब हम महिलाओं के पास जाते थे तो वे महिलाएं हमसे बात करने में शर्माती थी। हम जब उन्हें महावारी के दिनों में रखी जाने वाली सावधानियों के विषय में बताते थे तो उन्हें आश्चर्य लगता था कि हम किस तरह की बात कर रहे हैं। दिलीप कहते है कि सोसायटी में अभी बहुत बदलाव की आवश्यकता है क्योंकि अभी भी ग्रामीण अंचलों में महिलाएं महावारी के समय कपड़े का ही इस्तेमाल करती है साथ ही अभी भी इस पर बात नहीं की जाती। वे कहते हैं कि कोविड ने तो महिलाओं के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाला है और सारे सामाजिक संगठनों को इस पर काम करने की जरूरत है।
झोपड़ी से शुरू हुई कहानी
कैब्रिज यूनिवर्सिटी से सोशल वेलफेयर और सोशल पॉलिसी में मास्टर करने के बाद दिलीप पट्टुवाला सोलर लाइट का काम करने लगे। इसी दौरान उन्होंने एक झोपड़ी में देखा कि एक कपड़ा सूख रहा है और उस पर खून के निशान है। पहले वे समझे नहीं लेकिन जब उन्हें पता चला कि महिलाएं आज भी अपनी महावारी को छुपाती है उस पर खुलकर बात नहीं करती है और आज भी कपड़े का इस्तेमाल करती है तब दिलीप ने इस पर काम करने की ठानी और 55 लोगों की टीम खड़ी कर दी जो राजस्थान, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में काम कर रही है।
पुरूषों को समझाना है जरूरी काम की
शुरूआत तो हो गई। टीम बनी जो ग्रामीण अंचलों में जाकर महिलाओं और लड़कियों को महावारी और हेल्थ पर अवेयर करने लगे। इस दौरान दिलीप ने यह महसूस किया कि इसमें पुरूषों का जुड़ाव बहुत जरूरी है तभी हम महिलाओं के लिए एक अच्छा वातावरण बना पाएंगे। उनकी टीम ने पुरूषों को समझाना शुरू किया और टीम में कई सारे विंग बना दिए। मेरी सहेली मिस्ड कॉल दिलीप ने कोविड के समय महिलाओं के लिए मेरी सहेली मिस्ड कॉल शुरू किया है जो महिलाओं की स्वास्थ्य की परेशानियों को सुनकर उन्हें सलाह देते है और जरूरत पडऩे पर उस महिला तक पहुंचते भी है। दिलीप अपने यहां एक फैलोशिप प्रोग्राम चलाते हैं, जिसमें सिलेक्टेड लोगों को गांवों में जाकर महिलाओं और पुरूषों के बीच काम करना होता है।