Bastar news अबूझमाड़ में शिक्षा का उजियारा फैल रहा, दस महिलाओं ने बदली तस्वीर
आत्मविश्वास हर बड़ा काम आसान बना देता है
दंतेवाड़ा की बुधरीताती ने बुजुर्गो के लिए बनवाएं आश्रम अब सीमा लड़कियों के लिए बनाएंगी आश्रम
दंतेवाड़ा के हीरानार की बुधरीताती जिन्हें बड़ी दीदी के तौर पर जाना जाता है। दक्षिण बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित व पिछड़े हुए इलाके में समाज सेवा के क्षेत्र में आगे आने वाली महिलाओं में सबसे पहला नाम बुधरीताती का है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चियों, महिलाओं के उत्थान व बुजुर्गों की सेवा में समर्पित कर दिया है।
बुधरीताती कहती हैं कि आत्मविश्वास होने पर महिलाएं जागरूक होकर हर बड़ा काम कर सकती है। अबूझमाड़ इलाके में भी महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण, बच्चियों को शिक्षित करने को जोखिम उठाया। अब तक उनके प्रयास से 551 महिलाएं आत्म निर्भर बन चुकी हैं। ३० बच्चों को गुरुकूल के माहौल में शिक्षित कर रही है। आपका मानना है कि बस्तर का विकास तो हुआ है लेकिन बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देना भी जरूरी है। वे कहती है कि गांव की महिलाएं अपने घर के साथ-साथ गांव का भी विकास करें।
बुधरीतातीअबूझमाड में महिलाओं को जागरूक कर बना रही आत्मनिर्भर
३० बच्चों को पढ़ाने के साथ महिलाओं को बताती है कैसे रहे सेहतमंद
दक्षिण बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित व पिछड़े हुए इलाके में समाज सेवा के क्षेत्र में आगे आने वाली महिलाओं में सबसे पहला नाम बुधरीताती का है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चियों, महिलाओं के उत्थान व बुजुर्गों की सेवा में समर्पित कर दिया है। बीते 36 साल से समाज सेवा कर रही बुधरीताती ने इंद्रावती नदी के दूसरी तरफ स्थित अबूझमाड़ इलाके में महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण, बच्चियों को शिक्षित करने को जोखिम उठाया। नतीजतन अब तक उनके प्रयास से 551 महिलाएं आत्म निर्भर बन चुकी हैं, जिनमें कुछ सिलाई के क्षेत्र में, कुछ शिक्षिका व नर्स बनकर समाज में सेवाएं दे रही हैं।
३० बच्चों को दिला रही गुरुकुल की शिक्षा
दंतेवाड़ा गीदम ब्लॉक अंतर्गत हीरानार गांव के आदिवासी परिवार में जन्मीं बुधरी का झुकाव आध्यात्म की तरफ बचपन से ही हो गया था। 5 साल की उम्र से ही गुमरगुंडा आश्रम से जुड़ीं। वर्ष 1984 में दिव्य जीवन संघ गुमरगुंडा आश्रम से उन्होंने दीक्षा ली। इसके बाद आदिवासी क्षेत्र में महिलाओं के शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण के क्षेत्र में जागरूकता लाने का बीड़ा उठाया।
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम से जुडक़रहीरानार में मां शंखनी महिला उत्थान केंद्र शुरू किया। इस केंद्र के जरिए महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के साथ ही ३० बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का इंतजाम भी करती हैं। इसके अलावा वृद्धाश्रम का संचालन भी करती हैं, जिसमें बुजुर्गों को जीवन संध्या में सहारा मिलता है।
दस महिलाओं के साथ कर रही बड़े काम
बुधरीताती कहती है कि आदिवासी लोग समाज के लोगों की बात जल्दी मानते है इस कारण ही हमने बस्तर में समय के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य व पोषण पर काम किया और बाल-विवाह रूकवाएं। उनके मां शंखनी स्वसहायता दल में १० महिलाएं जुड़ी है यह महिलाएं गुरुकुल में रहने वाले ३० बच्चों की पालन-पोषण के साथ ही क्षेत्र में जाकर महिलाओं को स्वास्थ्य व पोषण की जानकारी देती है।
मिल चुके कई सम्मान
बुधरीताती को विभिन्न राज्यों व संगठनों से कई पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ शासन भी उन्हें वीरनी पुरस्कार से अलंकृत कर चुका है। पं सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर में उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया हुआ है।
हायर एजुकेशन देने के लिए बनेगी अधिकारी
बस्तर के ग्रामीण अंचलों में लड़कियां आर्थिक हालातों के चलते १२ वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैे, लेकिन दंतेवाडा में रहने वाली २३ साल की सीमा ने १२ वीं के बाद पढऩे की राह चुनी और आदिम कैफे में कार्य करने लगी। अब वो उन लड़कियों के लिए आश्रम बनाएगी, जो १२ वीं के बाद आर्थिक हालातों के कारण पढ़ नहीं पाती है।
लाइवली हुड कॉलेज में पढ़ाई नहीं
सीमा कैफे में ही नौकरी कर बस्तर पुलिस की तैयारी कर रही है वो कहती हैं कि दंतेवाड़ा में लाइवली हुड कॉलेज में उतना अच्छा पढ़ाया नहीं जाता। इस कारण हम बहुत अच्छा सीख नहीं पाते है। यदि सरकार कॉलेज की सामान्य पढ़ाई में भी हमारी मदद करती है तो यहां की लड़कियां आगे पढ़ पाएगी।
सीमा पुलिस अधिकारी बनना चाहती हंै और अपने जैसी ही लड़कियों को १२ वीं के बाद आगे पढ़ाना चाहती है। वो कहती हंै कि सरकार ने ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए १२ वीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था तो कर दी है, लेकिन १२ वीं के बाद आर्थिक हालत खराब होने के कारण कई बच्चे पढ़ नहीं पाते। खास कर लड़कियां या तो खेतों में काम करने लगती है या उनकी शादी कर दी जाती है।