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Culture इन महिलाओं ने गहनों और गानों का कुछ इस तरह करा इस्तेमाल कि बदली तस्वीर

हर काम आसान होगा जब महिलाओं को एक दूसरे का साथ मिलेगा

भिलाई की रहने वाली समाज सेविका शांता शर्मा, जो छत्तीसगढ़ी संस्कृति और पहनावे को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही समाज के हर तबके तक मदद पहुंचाती है। लोगों की मदद से असहाय बच्चों को पढ़ा रही है, जरूरतमंदों को मदद करने के साथ ही हर साल तीजा पर महिलाओं को साड़ी बांटती है। इनके काम के आधार पर ही इनका नाम गोल्डन बुक में दर्ज हो चुका है।

संस्कृति के रंग जीवन को खुशनुमा बना देते है, इसलिए सभी का इससे जुड़ाव हो

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पहनावे को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैं कई सालों से प्रयास कर रही थी मैं आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं थी लेकिन लोगों ने मेरे काम को देखते हुए मुझे सहयोग किया और15 फरवरी 2023 को मैंने एक बड़ा काम किया कि छत्तीसगढ़ी गहना, रूपया में गोंडी भाषा और राज्य की 7 महिलाओं का नाम डाला। यह काम आज तक किसी ने नहीं किया राज्य बने 23 साल हो गए लेकिन किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया। इसी कारण हम महिलाओं ने 15 फरवरी को गहना दिवस के रूप में मनाने का सकल्प लिया और इसके लिए हम पूरे राज्य में काम कर रहे है।

शांता ने बताया कि हमारी रुपाली महतारी गुडी बहुउद्देशीय संस्था के जरिए हम यह कार्य कर रहे है। छत्तीसगढ़ में गहनों में रुपया, मोहर बंदा सुता में गोंडी में लिखवाई कराकर गोंडी बोली के महत्व को उजागर किया है यूनेस्को, भारत सरकार एवं छत्तीसगढ़ सरकार से भी छत्तीसगढ़ प्राचीन गहना धरोहर दिवस के रूप में मनाने की मांग के लिए आवेदन करेंगे ताकि गहनों की प्राचीन संस्कृति विलुप्त ना हो। और प्राचीन गहने संरक्षित रहे।

सेना में गए है कई बच्चे

12 साल से समाज के लिए कार्य कर रही शांता शर्मा ने अपना पूरा जीवन काम को समर्पित कर दिया। शांता कहती हैं कि शादी नहीं की ताकि लोगों को समय दे सकूं। आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाई में मदद करती है इसके लिए राज्य की महिलाएं जो विदेश में रहती है वे मदद करती है। 55 बच्चों को उनकी मदद से पढ़ा रही है और इन्हीं में से कई बच्चे सेना के अलग-अलग विंग में काम कर रहे है।

सादगी के साथ कर रही काम

भिलाई के साथ ही अन्य जिलों में महिलाओं के लिए काम करने वाली शांता शर्मा बहुत सामान्य परिवार से आती है, लेकिन महिलाओं को आगे बढ़ाने और छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अब लोग उनके सेवाभाव को देखकर ही मदद के लिए आगे आ रहे है।

लक्ष्मी के प्रयास से सरगुजा अंचल में लगी छत्तीसगढ़ महतारी मूर्ति

मनेंद्रगढ़। लक्ष्मी नाग महिलाओं और लड़कियों के चहरे पर तीज- त्योहार के जरिए मुस्कान लाने का कार्य कर रही है। छत्तीसगढिय़ा परंपरा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बीते 11 साल से काम कर रही है इसी कड़ी में लक्ष्मी ने सरगुजा अंचल में मनेंद्रगढ़ विकासखंड के ग्राम पंचायत बंजी में छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति लगवाई । अब आलम यह है कि आसपास के 11 ग्राम पंचायत में भी मूर्ति लगाने का संकल्प लिया है। जोगनी कला मंच से जुड़ी महिला लक्ष्मी नाग बिलासपुर में साल 2012 से समाज सेवा कर रही हैं। वर्ष 2018-19 में कोरिया आने के बाद छत्तीसगढ़ महिला क्रांति सेना की जिलाध्यक्ष बनी और लगातार समाजेसवा का कार्य करती रहीं। उनका बहनों व बच्चियों पर फोकस है। लक्ष्मी नाग समाजसेवा और कला में बेहतर कार्य करने के लिए कई बार सम्मानित हो चुकी हैं।

महिलाओं के मुस्कुराने की वजह बनना है

लक्ष्मी कहती हैं कि हमारी संस्था बहनों के लिए कार्य करती हैं। होली और तीज मिलन कर खुशियां बांटते हैं। कार्यक्रम के बहाने महिलाओं के चहरे पर मुस्कुराहट की वजह बनते हैं। हमारी संस्था से करीब 100 महिलाएं जुड़ी हैं। वहीं छत्तीसगढिय़ा तरीके से होली पर्व मनाते हैं। लक्ष्मी पारंपरिक लोक नृत्य सुआ के साथ ही छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत को प्रोत्साहित कर रही हैं।

पिता की प्रेरणा ने बनाया लोक गायिक, लोगों तक पहुंचा रही पुराने गीत

राजनांदगाव की रहने वाली पेशे से शिक्षिका और लोक गायिका शिवानी जंघेल एक और जहां बच्चों को शिक्षा के जरिए साक्षर कर रही हैं तो वहीं दूसरी और अपने पिता की सांस्कृतिक धरोहर उनके लिखे गीतों को अपनी आवाज देकर लोगों तक पहुंचा रही हैं। अब तक 100 से ज्यादा लोकगीत गाने वाली शिवानी पिता जयवन जंघेल को अपना आदर्श मानती हैं। शिवाली कहती हैं कि बचपन से ही पिता द्वारा लिखे गीतों को गाकर सुर ताल को समझी हूं। सबसे पहले अनुराग धारा संस्था में काम करने का मौका मिला। इसके बाद चंदैनी गोंदा, रंग सरोवर यहां से पहचान मिलना शुरू हुई।

फिल्मों में भी कई गीत गाए

शिवानी ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कई गाने गाए है। उनका पहला फिल्मी होली गीत था। निर्माता संतोष जैन की फिल्म जय बम्लेश्वरी मईया में इसे फिल्माया गया। खुमानलाल साव के म्यूजिक डायरेक्शन में यह गाना तैयार हुआ था। इसके बाद डायरेक्टर संजय बत्रा ने उन्हें मौका दिया। फिल्म कारी में तोला भरोसा मन कहिथे कलेचुप… गाना को लोगों ने पसंद किया। इसके बाद कई एल्बम और फिल्मों में गाने का मौका मिला। कनिहा म करधन अउ पांव में साटी तोर… को काफी पसंद किया गया।

संगीत सुकून देता है, शिक्षा देना मेरी जिम्मेदारी

अंग्रेजी में एमए और बीएड की पढ़ाई पढ़ाई करने के बाद शिवानी ने शिक्षा को चुना। वर्तमान में वो डोंगरगांव के सरकारी स्कूल में शिक्षिका है। बच्चों को शिक्षा देने के साथ ही लोक गीत व संगीत को भी साथ लेकर चल रही हैं। वो कहती हैं, संगीत मुझे सुकून देता है। मैं इससे कभी भी जुदा नहीं हो सकती।

कंपोज करना भी सीख रही हूं

शिवानी कहती हैं कि लोग आज भी पापा के लिखे हुए लोकगीत पसंद करते हैं। इनमें चाहे कनिहा म करधन… सॉन्ग हो या अन्य। लोकगीतों को लोग नए अंदाज में भी सुनना चाहते हैं। शिवानी अब गायिकी के साथ गाना कंपोज करना और और लिखना सीख रही हैं। इनमें कई गाना उनके पापा के है। हाल ही में रिलीज हुआ सपना… सॉन्ग को खुद ही कंपोज कर लिखा है। जिसे काफी ज्यादा पसंद किया गया।

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