छत्तीसगढ़ के इस गांव को कहा जाता है खिलाडिय़ों की फैक्ट्री, हर दूसरे घर में नेशनल खिलाड़ी
सरकारी स्कूल के एक व्यायाम शिक्षक मोतीलाल साहू ने दुर्ग जिले के पुरई गांव की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बना दी। आज इस गांव की पहचान खेलगांव के रूप में है। साहू के लगन, त्याग और कड़ी मेहनत की बदौलत इस गांव में हर दूसरे घर में नेशनल या स्टेट लेवल के खिलाड़ी मिल जाएंगे। इस गांव को खिलाड़ियों की फैक्ट्री कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी, वह भी बिना किसी सरकारी मदद के।
करीब चार हजार की आबादी वाले पुरई में हल्की-फुल्की खेल गतिविधियां होती थी। मोतीलाल साहू ने नवीन खो-खो क्लब पुरई का गठन कर वर्ष 2000 से खुद प्रशिक्षण देकर गांव के युवकों को तराशना शुरू किया तो सक्रियता बढ़ गई। 20 खिलाड़ियों से प्रशिक्षण शुरू हुआ। तब से वे लगातार प्रतिदिन बिना गुरु दक्षिणा लिए प्रतिभाओं को तराश रहे हैं। आज इनके क्लब में 150 बालक बालिकाएं प्रशिक्षण ले रहे हैं। जिसमें पुरई के आसपास के गांव के बच्चे भी आते हैं।
50 खिलाड़ियों का नेशनल में चयन
सबसे पहले 2002 में इस गांव के 13 खिलाड़ी खो-खो में राज्य स्तर पर सिलेक्ट हुए। अगले साल ही 6 खिलाड़ियों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। अब राज्य व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हर साल इस गांव के 40-50 खिलाड़ियों का चयन होता आ रहा है। हर साल कम से कम दर्जन भर खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाते हैं।
खेल के दम पर 60 लोग सरकारी सेवा में
मोतीलाल ने कहा, गांव के बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से हैं। मैं बच्चों की हरसंभव मदद करने की कोशिश करता हूं। आज खेल के दम पर ही इस गांव के करीब 60 खिलाड़ी शासकीय सेवा में हैं। इनमें से ज्यादातर पुलिस, अर्धसैनिक बलों व आर्मी में हैं।
प्रैक्टिस, योग और मेडिटेशन का असर
सुबह साढ़े पांच बजे से खिलाड़ी ग्राउंड में प्रैक्टिस करने आते हैं। योग व मेडिटेशन के बाद खिलाड़ी खेल की प्रैक्टिस शुरू करते हैं। रविवार को एक घंटे के लिए व्यक्तित्व विकास की क्लास भी मैदान में लगाई जाती है। खिलाड़ियों को डाइट, आचरण, व्यवहार व पढ़ाई के महत्व के बारे में बताया जाता है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को लगातार पढ़ाई करने के लिए कहा जाता है। पढ़ाई में फेल होने वाले या अन्य नियमों को पालन न करने वाले को मैदान में न घुसने देने जैसे सख्त नियम भी बनाए गए हैं।