कौन है बलिराम कश्यप, जिन्हें पीएम मोदी मानते हैं अपना गुरु, जानिए राजनीतिक इतिहास
बस्तर में लोकसभा चुनाव अपने चरम पर है। इस बीच यहां के पुराने बाशिंदे उस दौर को याद करते हैं जब यहां के सांसदों की दिल्ली में खूब चला करती थी। भाजपा के चार बार के सांसद बलीराम कश्यप की बात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी नहीं काटते थे। ऐसे नेता कांग्रेस के तीन बार के सांसद मानकूराम सोढ़ी थी। सोढ़ी जो कह देते पूरा गांधी परिवार उसे सुनकर अमल भी करता था।
यह दोनों नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन जब भी लोकसभा चुनाव आता है तो इन दोनों को बस्तर की जनता याद करती हैं क्योंकि इनके जैसी बुलंदी संसदीय राजनीति में बस्तर से किसी दूसरे नेता को नहीं मिल पाई। अरविंद नेताम भी यहां से चुनाव लड़े और इंदिरा कैबिनेट में मंत्री बने। हालांकि अब वे कांग्रेस में नहीं हैं, लेकिन उनके दौर के कई किस्से भी आज खूब सुने-सुनाए जाते है।
मानकूराम का इस्तीफा स्वीकारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं सोनिया
बस्तर से तीन बार सांसद रहे मानकूराम सोढ़ी की भी कांग्रेस में खूब चला करती थी। उनके प्रति पार्टी में सम्मान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोनिया गांधी ने उनका इस्तीफा स्वीकारने से मना कर दिया था। दरअसल विधानसभा के एक चुनाव में पार्टी ने उनके बेटे शंकर सोढ़ी को कोण्डागांव से विधायक का टिकट नहीं दिया तो वे नाराज हो गए और उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। तब उन्हें मनाने के लिए खुद सोनिया गांधी ने फोन किया था और इस्तीफा स्वीकारने से मना कर दिया था। पांच बार के विधायक और तीन बार के सांसद व 28 साल तक बस्तर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मानकुराम सोढ़ी के युग का अंत 1998 के चुनाव में हो गया। इसके बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा।
शिक्षक की नौकरी छोड़ राजनीति में आए, पहला चुनाव हार गए थे बलीराम
शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र देकर राजनीति में कदम रखने रखने वाले बलीराम कश्यप ने जगदलपुर सीट से 1967 का विधानसभा चुनाव लड़ा पर जीत नहीं मिली।1971 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गए। अपने पांच दशक की राजनीति में पांच बार विधायक और चार बार सांसद रहे स्वर्गीय बलीराम कश्यप बस्तर में भाजपा के अपने समय के सबसे प्रमुख नेता थे। भाजपा के बस्तर में पहले अध्यक्ष थे। शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र देकर राजनीति में कदम रखने रखने वाले बलीराम कश्यप ने जगदलपुर सीट से 1967 का विधानसभा चुनाव लड़ा पर जीत नहीं मिली। राजनीति में वह संसद पहुंचने का सपना मन में पाले हुए थे लेकिन उनका सपना तभी पूरा हुआ जब प्रदेश की राजनीति नहीं करने की उन्होंने सार्वजनिक घोषणा की।
ऐसी कोई जगह नहीं जहां मैं और बलीराम जी साथ न गए हों
प्रधानमंत्री मोदी जब बस्तर के आमाबाल में सभा के लिए पहुंचे तो उन्होंने यहां कहा कि आज मैं अपने बहुत पुराने साथी बलीराम कश्यप जी की जन्मस्थली, कर्मस्थली पर हूं। यहां का शायद ही कोई स्थान हो जहां हम साथ न गए हों। बलिराम जी ने जो तप किया, उसी का परिणाम है कि हमें आपका यह विश्वास मिला है।