मांधाता पर्वत के ऊं आकार के कारण नाम पड़ा ‘ओंकारेश्वर’
खंडवा. नर्मदा के किनारे विराजित ओंकारेश्वर ज्योर्तिंलिंग भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर माना जाता है।
इंदौर से करीब 80 किमी और खंडवा से लगभग 70 किमी दूर ओंकारेश्वर तक पहुंचने के लिए नर्मदा नदी को पार करना पड़ता है। नर्मदा और कावेरी नदियों के बीच मांधाता पर्वत ऊं के आकार में नजर आता है। इसी के चलते इस स्थान को ओमकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि पर्वत की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार विंध्य पर्वत को अपनी ऊंचाई पर बहुत गर्व था। उसे सबक सिखाने के लिए भगवान शिव ओंकारेश्वर का रूप धारण कर शिखर पर विराजित हुए
मान्यता : देवी पार्वती संग चौपड़ खेलते हैं शिव: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव-माता पार्वती के साथ ओंकारेश्वर में रात्रि विश्राम के लिए आते हैं। रात के समय शिव, आदिशक्ति माता पार्वती के साथ चौपड़ खेलते हैं। शयन आरती के बाद यहां चौपड़ बिछाकर मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है। अगले दिन सुबह जब गर्भगृह खोला जाता है तो यह चौपड़ बिखरा हुआ मिलता है। इसके दर्शन का भी विशेष महत्व है।
शयन आरती का विशेष महत्व
यहां दिन में चार बार आरती होती है, मंगला आरती के साथ सुुबह 4.30 बजे मंदिर खुलता है। दोपहर 12.30 बजेे भोग आरती, शाम 4.00 बजेे शृंगार आरती और रात 9.00 बजेे सेे 9.45 बजेे तक शयन आरती होती है। इसके बाद चौपड़ बिछाकर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। शयन आरती का विशेष महत्व माना जाता है।