केदारनाथ धाम: भगवान शिव ने पांडवों को कुरुक्षेत्र युद्ध के पापों से किया था मुक्त
केदारनाथ. उत्तराखंड के चमोली जिले में भगवान शिव को समर्पित 200 से ज्यादा मंदिर है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण केदारनाथ है। समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है और देश में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है।
श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों ने अपने ही सगे-संबंधियों की हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव से आशीर्वाद मांगा। भगवान शिव ने नंदी (बैल) का रूप धारण करके पांडवों से बचने की कोशिश की, लेकिन अंतत: केदारनाथ में पांडवों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद भगवान शिव धरती में समा गए और नंदी के रूप में केवल उनका कूबड़ ही सतह पर रह गया। माना जाता है कि मंदिर उसी स्थान पर बना है, जहां भगवान शिव धरती में समाए थे। बताया जाता है कि यहीं पर भगवान शिव ने दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया।
भगवान शंकर नंदी की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं। शिव के शेष भाग चार अन्य स्थानों पर प्रकट हुए और उन्हें उनके अवतार के रूप में पूजा जाता है। भुजाएं तुंगनाथ में, चेहरा रुद्रनाथ में, पेट मदमहेश्वर में और सिर के साथ जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। केदारनाथ व उपरोक्त चार मंदिरों को पंच केदार माना जाता है।
साल में केवल 6 महीने खुलता है मंदिर
मंदिर आमतौर पर कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के पहले दिन बंद हो जाता है और हर साल वैशाख (अप्रैल-मई) में फिर से खुलता है।
आदि शंकराचार्य ने करवाया मंदिर निर्माण
मंदिर बर्फ से ढकी चोटियों से घिरे एक विस्तृत पठार के बीच में स्थित है। हिंदू परंपरा में, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ज्योर्तिलिंगम या ब्रह्मांडीय प्रकाश के रूप में प्रकट हुए थे। ऐसे 12 ज्योतिर्लिंग में केदारनाथ उनमें सबसे ऊंचा है। इसका निर्माण जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने एक हजार साल पहले करवाया था। सभा भवन की भीतरी दीवारों को पौराणिक कथाओं के दृश्यों से सजाया गया है। द्वार के बाहर नंदी की एक बड़ी मूर्ति पहरेदार के रूप में खड़ी है। मंदिर बहुत बड़े, भारी और समान रूप से कटे भूरे पत्थरों से बना है। पूजा के लिए गर्भगृह और तीर्थयात्रियों के एकत्र होने के लिए उपयुक्त मंडप है। मंदिर में शंक्वाकार चट्टान है, जिसमें भगवान शिव को उनके सदाशिव रूप में पूजा जाता है।