डांट से गिरता बच्चों का मनोबल, ऐसे में माता-पिता क्या करें, जानिए यहां
पांच साल की चिया सुबह स्कूल जाने के समय रोने लगती है और उसे बुखार आ जाता है। वहीं, छह वर्षीय दक्ष को भी पढ़ाई के नाम पर डर लगता है और वह बार-बार कहता है कि मुझे कुछ याद नहीं होगा, मैं नहीं कर पाऊंगा। इस स्थिति को आमतौर पर पेरेंट्स बच्चों का पढ़ाई से बचने के लिए नाटक समझ लेते हैं और उन्हें स्कूल भेज देते हैं।
लेकिन स्कूल में उनकी परेशानी कम नहीं होती, बल्कि टीचर्स की डांट और डिमोटिवेशन से बच्चे का मनोबल गिरता जाता है। चिकित्सकों का मानना है कि बच्चे की इस तरह की कंडीशन उनका नाटक करना नहीं बल्कि स्टडी फियर है। जो आजकल के स्टडी मैटेरियल और प्रतिस्पर्धा के माहौल के कारण बच्चों के दिल और दिमाग में घर करता जा रहा है। 4-8 साल के बच्चों में मुख्य रूप से देखे जाने वाले इस फियर में टीचर्स और पेरेंट्स को धैर्य रखने और बच्चे के आत्मविश्वास को बढ़ाने की जरूरत है।
प्राइमरी लेवल पर रिजेक्शन से डिप्रेशन
कहने को यह छोटी सी बात है, लेकिन प्राइमरी लेवल पर अगर बच्चे को रिजेक्शन मिले, तो वह डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट डॉ. शैलेन्द्र कटारा का कहना है कि छोटे बच्चों को बार-बार यह कहने से कि ‘अभी तक लर्न क्यों नहीं हुआ?‘ बच्चे जल्दी डिप्रेशन में चले जाते हैं और पढ़ाई से बचने के लिए स्वयं को आइसोलेट कर लेते हैं।
माता-पिता और टीचर्स ध्यान दें
पेरेंट्स बच्चों से एक बार में ही सब कुछ सीखने की उम्मीद करते हैं, लेकिन उन्हें अपने बचपन को याद करना चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या वे खुद ऐसा कर सके थे, जैसा वे बच्चे से उम्मीद कर रहे हैं।
बच्चों को छोटे-छोटे टुकड़ों में याद करवाना चाहिए। इससे बच्चों को सीखने में आसानी होती है
स्कूल स्टाफ और पेरेंट्स को बच्चों को ऐसा माहौल देना चाहिए जिसमें बच्चे प्रैक्टिकल तरीकों से चीजों को सीख सकें।
कई बार बच्चे का पढ़ने का मन नहीं होता, लेकिन पेरेंट्स पढ़ने के लिए जोर देते हैं। ऐसे में, बच्चे के साथ प्यार से व्यवहार करें।
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी केवल स्कूल या ट्यूशन टीचर पर न डालें।