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आजाद भारत की गाथा… लार्ड डलहौजी की हड़प नीति की शिकार हो गई थी कोरबा की जमींदारी, जानें

Independence Day 2024: कृतज्ञ राष्ट्र आजादी की 78वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इस आजादी को हमने काफी संघर्ष, बलिदान और त्याग के बल पर हासिल किया है। कई वीर योद्धाओं और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहूति दी है। स्वतंत्रता के खातिर अपना सब कुछ न्योछावर किया है। इन्हीं में से एक कोरबा की जमींदारी है। यहां के राजा जोगेश्वर प्रताप सिंह का कोई पुत्र नहीं था।

दो बेटियों में से एक की मृत्यु हो गई थी, दूसरी बेटी की शादी पोड़ी उपरोड़ा के जमींदार रुद्रशरण प्रताप सिंह के संग हुई थी। राजा जोगेश्वर की मृत्यु 1918 में हो गई थी। उनकी बेटी को अंग्रेजी सरकार ने उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया था। अंग्रेजी हुकूमत ने लार्ड डलहौजी के हड़प नीति को आगे बढ़ाया और कोरबा की जमींदारी को हड़प ली। यहां से प्राप्त होने वाले सभी लगानों पर अंग्रेजी सरकार का कब्जा हो गया। धनराज कुंवर के अधिकार छीन गए।

अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ दिया गोपनीय संघर्ष

इस घटना ने रानी पर गहरा छाप छोड़ी और उन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध गोपनीय तरीके से संघर्ष शुरू कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम के लिए रानी नायक तैयार करने लगीं। उनके इस कार्य में यहां के लोगों ने काफी सहयोग किया।

रानी ने कानूनी लड़ाई से दोबारा हासिल की जमींदारी

अंग्रेजी हुकूमत ने अपने एजेंट के जरिए यहां की सत्ता का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। तब राजा जोगेश्वर की पत्नी धनराज कुंवर ने तत्कालीन ब्रिटीश कोर्ट में इसकी चुनौती दी। कई साल चले कानूनी दांवपेच के बाद बिलासपुर की कोर्ट से धनराज कुंवर मुकदमा जीत गईं और उन्हें अंग्रेजी सरकार से अपनी जमींदारी वापस मिल गई। सन 1922 में धनराज कुंवर इस जमींदारी की दोबारा मालकिन बन गईं।

अंग्रेजी शिक्षा को समझने के लिए खोला इंग्लिश मीडियम स्कूल

उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा के महत्व को समझा और एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल को खुलवाया। इसके पीछे रानी की सोच थी कि अंग्रेज अपने कानून की व्याख्या अपनी मर्जी से करते हैं और भारतीय लोगों को मूर्ख बनाकर उन पर एकाधिकार जमाते हैं। अंग्रेजी भाषा को समझने के लिए ही उन्होंने एक इंग्लिश पब्लिक स्कूल खोला। इसका मकसद अंग्रेजी भाषा पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थियों को तैयार करना था जो अंग्रेजों से उनकी भाषा में बात करें।

आजादी की लड़ाई में दिए गए अपने योगदान के कारण धनराज कुंवर को रानी की उपाधि दी गई थी। वर्तमान में रानी का कोई परिवार कोरबा में नहीं है लेकिन उनका राजमहल आज भी उनकी जमींदारी व्यवस्था का प्रतीक है, जिसमें आज कमला नेहरू महाविद्यालय का संचालन होता है। रानी ने अपना राजमहल और जमीन कॉलेज को दान कर दिया था।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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