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यह भिखारियों का गांव…ट्रेनिंग लेकर युवा बन जाते सलमान और हकला, मुंबई तक मांगते हैं भीख

सरकार भिक्षावृत्ति खत्म करने के कई अभियान चला रही है, पर मध्यप्रदेश के दमोह जिला मुख्यालय से महज पांच किमी दूर बसे गांव तिदौनी के लोगों का मुख्य पेशा भीख मांगना है। करीब 1200 की आबादी वाला यह गांव समाज की मुख्यधारा से कोसों दूर है। हर घर से एक सदस्य पुराने भिखारियों से ट्रेनिंग लेता है और फिर सलमान, टोंआ, हकला, रपटा जैसे नामकरण होते हैं।

यह भिखारियों…

इसी के साथ वह भीख मांगने का ’कारोबार’ करने निकल पड़ता है… कोई रेलवे स्टेशन पर तो कोई बस स्टैंड पर। कुछ तो मुंबई और दिल्ली तक भीख मांगने जाते हैं। लगभग हर घर में भिखारियों का झोला है। यही कारण है कि इस गांव को भिखारियों का गांव भी कहा जाता है।

स्कूल के बजाय भिक्षावृत्ति

गांव में नट जाति की आबादी सबसे ज्यादा है। गांव में नवजातों का भविष्य भी पैदा होने के साथ ही तय हो जाता है। छह माह से कम उम्र के बच्चों को लेकर महिलाएं भीख मांगने निकल पड़ती हैं। आलम यह है कि कई बच्चों के स्कूल में दाखिले तो हैं, लेकिन माता-पिता उन्हें स्कूल भेजने की बजाय भीख मांगने शहर भेज रहे हैं। छोटे बच्चों को भीख का प्रमुख जरिया मानने की सोच ने गांव की आबादी बढ़ा दी है। कुल आबादी का आधा हिस्सा 5 से 8 साल के बच्चों का है।

मांगकर लाई रोटी, कई दिन तक खाते

भीख में लोगों को रोटियां खूब मिलती हैं। महिलाएं इन्हें धूप में सुखाकर रख लेती हैं और कई दिनों तक परिवार खाता है।

प्रयास काम नहीं आए

तिदौनी के सरपंच प्रतिनिधि सोमेश गुप्ता का कहना है, ग्रामीणों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए ’वोकल फॉर लोकल’ के तहत कई काम किए गए। पीएम आवास योजना का लाभ दिया। गरीब परिवारों को राशन कार्ड, मनरेगा योजना आदि का भी लाभ मिल रहा है। आरओ वाटर प्लांट, डेयरी उत्पाद और गाय के गोबर से दीयों समेत कई सामग्री के निर्माण का काम दिया। दस परिवारों को गो-पालन, 15 परिवारों को बकरी व मुर्गीपालन कराया गया। फिर भी भीख मांगना नहीं छोड़ रहे।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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