कार रेसर डायना पुंडोले की कहानी, बोली- स्पीड मेरे अंदर हमेशा से ही रोमांच पैदा करती रही है..
मुंबई. बचपन से ही मुझे रोमांच और नई चीजें जानने और सीखने की ललक रही, जिसने मेरे जीवन की दिशा तय की। किताबें, सामुदायिक कार्यक्रमों में भाग लेना और नई चीजें सीखना, इन्हीं सब बातों ने मेरे व्यक्तित्व व सपनों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जब मेरी मां ने मुझे 18 वर्ष की उम्र में गाड़ी चलाना सिखाया तो उसे सीखने में केवल एक घंटे का समय लगा। उसके बाद मैंने कभी ड्राइविंग सीट नहीं छोड़ी। 16 वर्ष की उम्र में बाइक सीखी। स्पीड मेरे अंदर हमेशा से रोमांच पैदा करती थी।
मैंने अपने लिए रास्ते खुद बनाए मैं एक मां हूं। मैंने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी संभाला। कई ऐसे मौके आए जब अपनों से आलोचना सुननी पड़ी। पर मैंने अपने लिए खुद रास्ते बनाए। सफर आसान नहीं है, लेकिन मुश्किलों से मुझे हारना मंजूर नहीं है।
मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी
मोटर स्पोर्ट्स में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। इसकी अपनी चुनौतियां हैं। एक महिला के तौर पर इस खेल में उतरना यानी पुरुषों की बराबरी करना आसान नहीं रहा। महिला प्रतियोगी के रूप में मेरे अच्छे-बुरे हर तरह के अनुभव रहे पर जब आप ठान लेते हैं तो जीत अवश्य मिलती है। यह खेल महिलाओं के लिए नहीं, इस रूढ़िवादिता को मुझे तोड़ना था। कार रेसिंग में मानसिक रूप से मजबूत होना, आक्रामकता के बजाय शांत रहकर अपने लक्ष्य पर नजर रखना जरूरी होता है।