Supreme Court: इंसाफ की देवी की आंखों से पट्टी और हाथ से तलवार हटी, क्या हैं इनके मायने, जानें इतिहास
‘कानून अंधा होता है’ ये जुमला फिल्मों और असल जिंदगी में सभी ने सुना होगा। इसकी भावना यही है कि कानून बिना पक्षपात सूबतों की रोशनी में न्याय देता है। लेकिन अब कानून देख सकता है। सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी की प्रतिमा की आंखों से पहली बार पट्टी हटाई गई है और हाथ में संविधान की किताब है।
पहले यहां न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू तो दूसरे हाथ में तलवार थी, आंखों पर पट्टी बंधी थी। अदालतों में दिखने वाली मूर्ति को लेडी जस्टिस मूर्ति कहा जाता है। इस मूर्ति को मिस्र की देवी मात और ग्रीक देवी थेमिस के नाम से जाना जाता है। सूत्रों के मुताबिक यह कवायद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की है। उनके निर्देश पर ही न्याय की देवी का नया स्वरूप सामने आया है।
बदलाव की शुरुआत
इसे ब्रिटिश काल की विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही केंद्र सरकार ने ब्रिटिश शासन के समय से लागू इंडियन पीनल कोड (आइपीसी)कानून की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) कानून लागू किया था। लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में बदलाव इसी कड़ी का तहत उठाया कदम माना जा सकता है।
क्या हैं इनके मायने
तराजू : कानूनी मामले में प्रत्येक पक्ष को देखा जाना चाहिए और न्याय करते समय तुलना की जानी चाहिए।
आंखों पर पट्टी : आंखों पर पट्टी कानून की निष्पक्षता का प्रतीक है। यह भी अर्थ है कि फैसले राजनीति, धन या प्रसिद्धि से प्रभावित नहीं होते हैं।
तलवार: तलवार शक्ति और सम्मान की प्रतीक है। इसका अर्थ है कि न्याय अपने फैसले पर कायम है व कार्रवाई करने में सक्षम है।
लेडी ऑफ जस्टिस का इतिहास…
न्याय की देवी के रूप में जिस मूर्ति को हम देखते हैं, असल में यूनान की देवी हैं। उनका नाम जस्टिशिया है और उन्हीं के नाम से ‘जस्टिस’ शब्द आया है। 17वीं सदी में एक अंग्रेज न्यायिक अधिकारी पहली बार इस मूर्ति को भारत लाए थे। 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा। आजादी के बाद भी यह भारतीय अदालतों में निष्पक्ष न्याय के प्रतीक के रूप में लगी हुई है।
न्याय ताकत नहीं, संविधान से मिले
आंख से पट्टी हटाने का अर्थ है कि कानून अंधा नहीं है। तलवार की जगह संविधान का संदेश है कि ताकत नहीं बल्कि संविधान के अनुसार न्याय मिले। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि यह बदलाव समाज की जरूरतों के अनुसार किया गया है। आंखों से पट्टी हटाने का अर्थ यह भी है कि न्याय की देवी सब देखती हैं और जीवन की जटिलताओं से अवगत हैं।