क्या भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष संघ की मर्जी से बनेगा?
- हरियाणा चुनाव जीत का असली हीरो साबित हुआ संघ, भाजपा अब एकला चलो की स्थिति में नहीं
- संघ की इच्छा ” संजय जोशी, प्रवीण तोगड़िया और योगी आदित्यनाथ” में से कोई एक बने बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष
- संघ के अपनी पसंद के कारण मोदी-शाह जोड़ी है परेशान
- संघ की पसंद पर हो सकता है मोदी एंड कंपनी को ऐतराज
विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
वर्ष 2025 के शुरूआत में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना है। अटकले हैं कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव जनवरी में हो सकता है। बीजेपी का नया अध्यक्ष कौन होगा, यह सवाल पार्टी के अंदर और बाहर बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय है। मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल बीते चुनावों के कारण बढ़ाया गया था, लेकिन अब संगठन में नए अध्यक्ष की नियुक्ति जल्द हो सकती है। दिसंबर तक बीजेपी के संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाएंगे, उसके बाद ही नये राष्ट्रीय अध्यक्ष की प्रक्रिया प्रारंभ हो जायेगी। नये राष्ट्रीय अध्यक्ष की तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। लेकिन जो अटकलें चल रही हैं उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस की दखलअंदाजी को ज्यादा तवज्जों दिये जाने की चर्चाएं हैं। संघ चाहता है कि संजय जोशी, प्रवीण तोगडिया और योगी आदित्यनाथ में से कोई एक बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। जिसके लिए संघ ने बिसात बिछाना शुरू कर दी है। इस बिसात में इस बार संघ पूरी ताकत के साथ खड़ा है। क्योंकि संघ को लगता है कि जिस विचारधारा पर देश को ले जाना है उसमें यह तीन नाम ही पूरी तरह फिट बैठ रहे हैं। हम जानते हैं कि बीजेपी मूलत: संघ की राजनीतिक इकाई है, संघ की सर्वोच्च संस्था है, लेकिन 2019 के बाद से उसकी सर्वोच्यता पर सवाल उठे हैं और इसे संघ फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी और संघ के बीच साल 2019 के बाद टकराव ज्यादा गहरा हुआ है, जिसके चलते स्थितियां पेचीदा हुई हैं। अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता और राम मंदिर मूलत: संघ के एजेंडे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी कर्ताधर्ता बन गए, क्योंकि हर जगह वे ही दिखाई दे रहे हैं। इनकी अधिकारवादी और अधिनायकवादी प्रवृत्ति संघ को काफी चुभी और 2019 के बाद ये और पीड़ा देने लगी। मोदी अपने आपको पार्टी और संघ से उपर मानने लगे। शायद यही कारण है कि आज मोदी संघ के लिए किरकिरी बने हुए हैं। वर्तमान में जिस विचारधारा पर संघ चला है या चल रहा है उसमें अब मोदी फिट नहीं बैठ रहे हैं। या कहे कि अपने आप को फिट नहीं बिठाना चाहते हैं। ऐसे तमाम अवसर आये हैं जब मोदी ने संघ की विचारधारा से इतर काम किये हैं। जिसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें विचारधारा से बढ़कर प्रधानमंत्री की कुर्सी दिख रही हो। खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद तो स्थितियां और बदल गई हैं। मोदी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला और मोदी का कद कम हो गया। 2024 के परिणामों से संघ काफी आहत हुआ। भारत की राजनीति में एक यह नया अध्याय है जब आरएसएस और बीजेपी एक दूसरे के आमने-सामने आकर खड़ी हो गई है। कहने वाले तो यह कहते हैं कि यह दोनों एक ही है लेकिन इन दोनों बिल्कुल अलग दिखाई दे रही है कि इस वक्त फैसले पर आकर अटक गई है और ना ही निकल पा रही है। यहां पर मोदी और अमित शाह बीजेपी को पूरी तरह से कंट्रोल कर चुके हैं। उनके चंगुल से बाहर निकालने के लिए आरएसएस ने एक ऐसा दावा खेल दिया है जिसको किसी भी तरह से मोदी और अमित शाह एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे हैं। वह नहीं चाहते हैं कि आरएसएस इस तरह से दाव खेले कि मोदी और अमित शाह चाणक्य बुद्धि वाले यह दोनों व्यक्ति देखते रह गए हैं। मोदी और अमित शाह के कारण बड़ी परेशानियां उठ रही हैं। बीजेपी को प्रेसिडेंट नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में ऐसे सामने नाम आ गए हैं जिसे सुनकर अमित शाह और मोदी के कानों से धुआं निकलने लगा है। मोदी और अमित शाह दिन रात सो नहीं पा रहे हैं। वह अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए कोशिश कर रहे हैं। उनकी हालत खराब कर दी है बीजेपी को एक ऐसी दशा में ले जाना शुरू कर दिया जो संघ के मूल सिद्धांत और विचारधारा से मेल नहीं खाती।
आईये सबसे पहले हम उन नामों के विषय में जानते हैं जिन पर संघ भरोसा जता रहा है। और संघ की पसंद बने हुए हैं।
संजय जोशी: संघ की पहली पसंद
आज दरअसल कहानी उस इंसान की शुरू करना चाहूंगी जिसकी कहानी अभी सच में बाकी है। वह इंसान ऐसा है जिससे शायद इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे ज्यादा घबराते हैं। जिसके नाम का खौफ फिलहाल मोदी जी के दिल में बैठ गया है और उसे शख्स का नाम है संजय जोशी। संघ उन्हें वापस पार्टी की मुख्य धारा में लाना चाहता है। संघ चाहता है कि संजय जोशी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाये। भाजपा में सामान्य से सामान्य कार्यकर्ता को भी संजय जोशी अपना मित्र और मार्गदर्शक मानते हैं क्योंकि वह सरल और निरहंकारी हैं। लोगों से सहज ही आत्मनीयता स्थापित कर लेते हैं। कुशल संगठक के जो आवश्यक गुण होते हैं वे संजय जोशी में देखे जा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को महत्वपूर्ण दायित्व मिलता है तो उस संस्था के लिये अनमोल सहयोग होगा।
यह भी सच है कि संजय जोशी और नरेन्द्र मोदी का 36 का आंकड़ा है। यह 36 का आंकड़ा तबसे है जब गुजरात में नरेन्द्र मोदी मुख्य्मंत्री हुआ करते थे। संजय जोशी को गुजरात से और पार्टी से बाहर करने में मोदी का ही बहुत बड़ा रोल रहा है। हालांकि उस समय मोदी को संजय जोशी को बाहर करने में बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। अगर संजय जोशी बीजेपी में किसी पोजीशन पर आ जाते हैं, अध्यक्ष पद पर आ जाते हैं तब तो मोदी जी के लिए 05 साल पूरे करना मुश्किल होगा। दरअसल संजय जोशी के विषय जानना जरूरी है। संजय जोशी संघ के प्रचारक थे और संघ के लिए काम करते थे लेकिन संघ को उनमें कुछ क्वालिटी नजर आई तो संघ ने उन्हें कहा कि आप बीजेपी ज्वाइन कीजिए। फिर उन्हें 1989 में गुजरात भेजा गया। स्पेशल जिम्मेदारी लेकर भेजा गया क्योंकि गुजरात में उस वक्त भाजपा कमजोर थी और संजय जोशी की खासियत थी कि वह ग्रास रूट वर्कर से मिलकर ग्रास रूट लेवल पर पार्टी को मजबूत करते थे। 1988 में जब वे गुजरात पहुंचे उसके बाद उन्होंने गुजरात में सचिव के रूप के तौर पर काम किया। उस वक्त जोशी ने पार्टी को मजबूत किया। भाजपा सत्ता में आई। गुजरात में मुख्यमंत्री के लिए दो दावेदार थे केशु भाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला। उस वक्त संजय जोशी और नरेंद्र मोदी दोनों ने केशु भाई पटेल का समर्थन किया। पटेल मुख्यमंत्री बन गए। पटेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद शंकर सिंह वाघेला ने विद्रोह कर दिया। नरेंद्र मोदी पर विद्रोह की गाज गिरी। उन्हें गुजरात से दिल्ली भेज दिया गया लेकिन संजय जोशी गुजरात में रहे और जैसे ही नरेंद्र मोदी दिल्ली गये, उसके बाद संजय जोशी और मजबूत हो गए। मोदी गुजरात आना चाहते थे। गुजरात में काम करना चाहते थे, गुजरात में किसी भी तरह से घुसना चाहते थे पैठ बनाना चाहते थे लेकिन कहा यह जाता है कि जब-जब उन्होंने गुजरात में जाने की कोशिश की संजय जोशी ने उनका रास्ता काटा। गुजरात में मोदी की एंट्री नहीं होने दी। मोदी को यह बात कहीं ना कहीं दिल में बैठ गई। और फिर वक्त आता है पार्टी केशु भाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाती है और 2002 में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाकर गुजरात भेजती है। नरेंद्र मोदी गुजरात पहुंचते हैं तो उनके निशाने पर सबसे पहले आते हैं संजय जोशी। नरेन्द्र मोदी चाहते थे कि किसी भी तरह से संजय जोशी को दिल्ली भेजा जाए, गुजरात से बाहर किया जाए। इसी बीच वर्ष 2005 में गुजरात में एक सीडी कांड होता है। जिसमें संजय जोशी को फंसाया जाता है। और संजय जोशी को गुजरात से बाहर जाने पर मजबूर किया जाता है। बात 2011-12 के आसपास की है, जब 05 साल राजनीति से दूर रहने के बाद संजय जोशी ने तबके बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से संपर्क किया। गडकरी से कहा कि मैं पार्टी के लिए कुछ करना चाहता हूं और नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी लेकिन उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाई। वहीं नरेन्द्र मोदी, संजय जोशी को सिर्फ गुजरात से ही बाहर नहीं करना चाहते थे वह तो संजय जोशी को पार्टी से ही बाहर करना चाहते थे। 2013 में मुंबई में बीजेपी का महाअधिवेशन था। नितिन गडकरी अध्यक्ष थे। अधिवेशन के एक दिन पहले मोदी ने शर्त रख दी कि अगर संजय जोशी नेशनल एग्जीक्यूटिव से इस्तीफा नहीं देते हैं तब तक मैं इस अधिवेशन में नहीं आऊंगा। इस तरह एक मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को चैलेंज किया था। नितिन गडकरी ने मजबूरी में संजय जोशी से इस्तीफा देने को कहा और संजय जोशी ने इस्तीफा दे दिया। यह बात मोहन भागवत को भी अच्छी नहीं लगी। राजनाथ सिंह को भी पसंद नहीं आयी थी। संजय जोशी को इस तरह से बाहर करना क्योंकि संजय जोशी ऐसे कार्यकर्ता हैं जो संगठन के लिए काम करते हैं। उसके बाद मोदी प्रधानमंत्री बन गए। इसके बाद संजय जोशी गायब ही रहे। संजय जोशी को पार्टी के अंदर बहुत लोगों का सपोर्ट है, संघ का सपोर्ट है। नितिन गडकरी का सपोर्ट है, राजनाथ सिंह का भी सपोर्ट है। लेकिन अब समय बदला है। संघ संजय जोशी को पुन:
लाना चाहता और इसमें अंदर ही अंदर नितिन गडकरी राजनाथ सिंह के साथ-साथ योगी आदित्यनाथ का भी सपोर्ट है। हालांकि अभी संजय जोशी ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में नोटबंदी और राम मंदिर को लेकर स्टेटमेंट भी दिया है। लेकिन मोदी को गले नहीं उतरी। आज भी मोदी संजय जोशी को एक आंख नहीं देखना चाहते। अब ऐसे में जबसे यह बात चली है कि संजय जोशी राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते हैं तो मोदी को लगता है कि क्या यह मुमकिन है। संजय जोशी आईआईटी से इंजीनियर हैं। और बहुत ही विद्धान हैं।
प्रवीण तोगड़िया: हिंदुत्व के प्रखर पुरोधा
प्रवीण तोगड़िया कुशल संगठक, श्रेष्ठशाली और भारतीय संस्कृति के लिए समर्पित व्यक्ति हैं। ऐसे व्यक्ति का किसी संस्था को मिलना उस संस्था के लिए लाभदायक होगा। प्रवीण तोगडिया ने सारा जीवन संगठन खड़ा करके एक विशाल प्रतिबद्ध विचारधारा से व्यक्ति निर्माण का अद्भुत निर्माण किया है। देश को नेतृत्व देने लायक व्यक्ति समाज को प्रदान किये ऐसा व्यक्ति भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहिए तो संस्था के लिये अपरिमित लाभकारी होगा। संस्कृ्ति समाज व देश के लिये स्वर्णिम अवसर होगा। वैसे संघ भी चाहता है कि प्रवीण तोगडिया को पसंद कर रहा है। और चाहता है कि तोगडिया बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें।
विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे प्रवीण तोगड़िया ने करीब तीन दशक तक विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहने के बाद 2018 में प्रवीण तोगड़िया ने इस्तीफा देकर संघ से भी नाता तोड़ लिया था। नई बीजेपी के दौर में अपनी पूछ घटने से प्रवीण तोगड़िया बेहद नाराज थे, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह के विरोधी माने जाने लगे थे। जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो संघ से भी नाता तोड़ कर प्रवीण तोगड़िया ने अलग राह पकड़ ली और अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद के नाम से नया संगठन बना लिया। बीच-बीच में प्रवीण तोगड़िया को लेकर कई तरह की चर्चाएं और विवाद भी हुए, लेकिन उनको सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुई जब जनवरी 2024 में राम मंदिर उद्घाटन के लिए उनको नहीं बुलाया गया। ध्यान रहे विश्व हिंदू परिषद ने ही अयोध्या में राम मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू किया था। पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर में मुलाकात भी हुई। प्रवीण तोगड़िया का दावा है कि दोनों मिलकर हिंदू समाज को एकजुट करना चाहते हैं। प्रवीण तोगड़िया और मोहन भागवत की मुलाकात ही अपने आप में महत्वपूर्ण है। लंबे अर्से बाद ये मीटिंग ऐसे माहौल में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक न होने की जोरदार चर्चा हो। मुलाकात के बाद प्रवीण तोगड़िया का कहना है, राम मंदिर निर्माण दशकों से बीजेपी के चुनावी वादे का हिस्सा रहा है, लेकिन पार्टी इसका चुनावी फायदा नहीं उठा सकी और 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से सबसे कम सीटों पर सिमट गई है। प्रवीण तोगड़िया असल में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार की तरफ इशारा कर रहे हैं। यूपी की हार और हरियाणा में जीत को भी संघ के असहयोग और सहयोग से जोड़ कर देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके पिछले 15 वर्षों से तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा शुरू हो गई। सूत्रों ने बताया कि एक वक्त ऐसा भी था जब पीएम मोदी और तोगड़िया गहरे दोस्त हुआ करते थे और दोनों एक ही स्कूटर से आरएसएस कार्यकर्ताओं से मिलने जाया करते थे। हालांकि वर्ष 2002 में मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनते ही दोनों के संबंधों में कड़वाहट आ गई। मेडिकल स्टूडेंट प्रवीण तोगड़िया की दिलचस्पी पहले से ही हिंदुत्व के गौरव और प्रचार पर थी। उनकी इसी विचारधारा के कारण वो संघ में चले गए थे, जहां उनकी मुलाकात नरेंद्र भाई मोदी से हुई थी। 1980 के दशक की शुरुआत से वो दोस्त बन गए थे। विचारधारा एक होने के चलते मोदी और तोगड़िया की दोस्ती मजबूत हो गई थी। 1985 में अहमदाबाद में सांप्रदायिक उन्माद शुरू हुआ तो प्रवीण तोगड़िया को विश्व हिन्दू परिषद की ज़िम्मेदारी दी गई। सांप्रदायिक उन्माद के दौरान हिंदू पीड़ितों की मदद करने के अलावा प्रवीण तोगड़िया ने और भी ज़िम्मेदारियां उठाईं। तोगड़िया परिषद में थे और मोदी संघ में थे। लेकिन उनका हर क़दम एक साथ और एक ही दिशा में होता था। तोगडि़या ने गुजरात में बीजेपी के लिए काफी काम किया है। ऐसे व्यक्ति को मोदी ने गुजरात से बाहर का रास्ता दिखाया। मोदी तोगडिया के नाम पर भी ऐतराज जता रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ: हिंदुत्व का नया चेहरा बनकर उभरे
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चल रहा है। आरएसएस इनके नाम पर भी विचार कर रहा है। क्योंकि इसके कई कारण सामने आ रहे हैं। पहला कारण तो यह है कि योगी आदित्यनाथ वर्तमान में हिंदुत्व का नया चेहरा बनकर उभरे हैं। ऐसे तमाम अवसर आये हैं जब योगी आदित्यनाथ ने हिंदुत्व की रक्षा और संरक्षण की दिशा में कदम उठाये हैं। योगी आदित्यनाथ का रिश्ता मोदी और शाह के साथ कैसा है। पता लगाया जा सकता है कि कितनी बार कोशिशें से हुई कि योगी आदित्यनाथ कौन की कुर्सी से हटाया जा सके। अपने खास लोगों को भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लगा दिया लेकिन उसके बावजूद भी योगी आदित्यनाथ ने अपनी कुर्सी नहीं छोड़ी। लेकिन अब संघ ने एक ऐसा रास्ता सुझा दिया है जिससे कि योगी आदित्यनाथ को कुर्सी बचाने का मौका मिल सकता है बल्कि कुर्सी के बदले कुर्सी मिल सकती है। योगी आदित्यनाथ ने उप्र में रहते हुए अपने आप को साबित किया है। संगठन से लेकर सरकार तक में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। किसी विशेष समुदाय वर्ग से भेदभाव किये बिना प्रदेश को साफ सुथरा किया है। धार्मिक उन्माद मचाने वालों को उन्होंने बख्शा नहीं है। संघ की पसंद का शायद यही कारण हो सकता है कि उनमें सबको साधकर चलने की क्षमता है, काबिलियत है। हालांकि योगी के विरोधी भी पार्टी और संगठन में बहुत हैं। जो नहीं चाहेंगे कि योगी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें।
अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए संघ की पसंद चलती है या मोदी एंड कंपनी की चलती है। क्योंकि इस पद के लिए काफी माथापच्ची होनी वाली है। संघ की दखलअंदाजी से मानकर चला जा सकता है कि यह राह इतनी आसान नहीं होने वाली है।