Nari Shakti: अपने हक के लिए बात करेंगे, तभी सभी वर्गों का होगा विकास
सरिता दुबे. गरियाबंद के पारागांव में बचपन बीता कभी सोचा नहीं था कि सामाजिक क्षेत्र में काम करूंगी, लेकिन आज यह मेरा जुनून बन गया है। सामाजिक संस्था की दीदी ने मेरी मां से पूछा कि कमार समुदाय की महिलाओं को पढ़ाना है क्या, कोई लड़की मिलेगी? मां ने कहा कि मेरी बेटी पढ़ा लेगी। मैं उस समय 17 साल की थी। उसी समय से मैं सामाजिक क्षेत्र में काम करने लगी।
छुरा ब्लॉक के कमार गांव (झरनी बहारा) में हमने कमार समुदाय को खेती करना सिखाया। उन्हें वन अधिकार और पेसा कानून की जानकारी दी। महिलाओं और बच्चों को पढ़ाया। साल 2005 में लोक आस्था सेवा संस्थान बनाया। हमारे संस्थान में आज 2600 महिलाएं काम कर रही हैं। गरियाबंद के हाटमहुआ, तेदुबाय, बागमार और पिल्लाकन्हार गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति भुंजिया और कमार रहती है। अब इस समुदाय की महिलाएं ग्रामसभा, पंचायत और कलेक्टर ऑफिस जाने लगी हैं। पहली बार उन्होंने कलेक्टर ऑफिस को देखा। बिना भेदभाव किए महिलाओं को आगे लाने के विचार पर हम कार्य कर रहे हैं।
गरियाबंद जिले का विजय नगर गांव, जहां 10 साल पहले गौंड आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों में छूआछूत इस कदर थी कि अनुसूचित जाति के लोग हैंडपंप से पानी नहीं ले पाते थे, यहां तक कि हैंडपंप के पास अपने पीने के पानी का बर्तन भी नहीं रख पाते थे। आदिवासी लोग उन्हें अपने बर्तन में पानी भरकर उनके बर्तन में डालते थे और कोई पुरुष हैंडपंप के पास न रहे तो उस दिन वो प्यासे रह जाते थे। स्कूलों में भी बच्चों के साथ बहुत भेदभाव किया जाता था, हमने छुआछूत की इस खाई को पाटा।
गरियाबंद में आदिवासी और विशेष पिछड़ी जनजाति के लोग रहते हैं। उन लोगों के लिए हमने काम करना शुरू किया और साल 2017 में संगवारी महिला मंच बनाया जो शराब के मुद्दे और घरेलू हिंसा पर कार्य करता था। हमने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए महिलाओं को संजीवनी के तौर पर तैयार किया। इसी समुदाय के बच्चे कुपोषित थे, उनके लिए काम किया।
आदिवासी क्षेत्र में यूनिवर्सिटी खुलवाई: गरियाबंद और छुरा ब्लॉक में कोई कॉलेज नहीं था हमने इसके लिए काम किया और कोसमी में यूनिवर्सिंटी खुलवाई। अब आसपास के बच्चे वहां पढ़ने जाते हैं। गरियाबंद के 5 ब्लॉक में हम कार्य करते है, जिसमें 3 ब्लॉक में आदिवासी और 2 ब्लॉक में सामान्य वर्ग के लोग रहते हैं।