Nari Shakti: दुनिया की 7 सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला प्रेमलता अग्रवाल, पढ़ें हौसलों की ये कहानी

दुनिया की सात सबसे ऊंची महाद्वीपीय चोटियों, यानी सेवन समिट्स पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला प्रेमलता अग्रवाल हैं। उन्हें साल 2013 में पद्मश्री और 2017 में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार से समानित किया गया था। प्रेमलता अग्रवाल ने उम्र और अड़चनों को चुनौती देते हुए 48 वर्ष की उम्र में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की। 20 मई 2011 को ऐसा करने वाली प्रेमलता अग्रवाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला बनीं, यह रिकॉर्ड 2018 तक उनके पास रहा।
अभियान पर उनके साथ गए शेरपा गाइड को जब पता चला कि एवरेस्ट टीम का हिस्सा उनकी छोटी बेटी नहीं बल्कि खुद प्रेमलता हैं, तो उसे आश्चर्य हुआ। माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने के बाद जुनूनी स्वभाव की प्रेमलता के मन में आया कि क्यों न सात महाद्वीपों में से प्रत्येक पर सबसे ऊंचे पर्वत, सात शिखरों पर चढ़ाई की जाए। मानो हर शिखर उनका लक्ष्य बन गया। इससे पहले वे छह जून 2008 को अफ्रीका में किलिमंजारो (5895 मीटर) पर जीत हासिल कर चुकी थीं।
10 फरवरी 2012 को दक्षिण अमरीका के एकोनकागुआ (6962 मी), 12 अगस्त 2012 को यूरोप के एल्ब्रास (5642 मी), 22 अक्टूबर 2012 को ऑस्ट्रेलिया ओसनिवा के कार्सटेंस पिरामिड (4884 मी), 5 जनवरी 2013 को अंटार्टिका के विनसन मैसिफ (4892 मी) और 23 मई 2013 को उन्होंने उत्तरी अमरीका के माउंट मैककिनले (6194 मी) को फतह किया।
उन्होंने 40 दिनों का कठिन ऊंट-यात्रा वाला थार मरुस्थल अभियान भी सफलतापूर्वक पूरा किया। इसमें उन्होंने 2007 में और फिर 2015 में गुजरात के कच्छ के रण से पंजाब में वाघा सीमा तक भारत-पाक सीमा पर 2000 किलोमीटर की दूरी तय की। उनके प्रयासों के लिए उन्हें लिका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला।
सात शिखरों के अभियान के दौरान उन्हें दुनिया भर में यात्रा करने और अन्य संस्कृतियों के लोगों के साथ बातचीत करने से उत्पन्न भाषा संबंधी बाधाओं को पार करना पड़ा। साथ ही शाकाहारी भोजन प्राप्त करने में कठिनाई, जलवायु परिवर्तन और टखने की पुरानी चोट से लगातार दर्द से लगातार जूझना पड़ा। लेकिन कोई भी चुनौती इनके सामने टिक नहीं पाई। प्रेमलता ने कहा, ‘लोगों का यह मानना है कि 40 वर्ष के बाद भारतीय महिलाएं कुछ नहीं कर सकती लेकिन मैं लोगों की इसी सोच को बदलना चाहती थी। मुझे खुशी है कि मैंने वह कारनामा किया है, जिससे लोग अपनी यह संकीर्ण सोच बदलने पर मजबूर हो जाएंगे। मेरी यह सफलता अकेले की नहीं है।