She News: ममता और संघर्ष ने बदला जिंदगी का नजरिया

मां के रूप में, हर महिला के पास अनगिनत संघर्षों और बलिदान की कहानियां होती हैं, जो कभी सामने नहीं आती डॉ. मिशेल हैरिसन और मुग्धा कालरा जैसी महिलाएं न केवल अपनी संतान के लिए, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए संघर्ष करती हैं, जिसे सहारे और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। ये हमें सिखाती हैं कि मां की ममता सिर्फ अपने बच्चों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह समाज के हर कमजोर और जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचती है।

न्यूरोडाइवर्सिटी के लिए एक मां की जंग

अपने बेटे को समाज के साथ जीना सिखाने के लिए मुंबई की एक मां की कोशिश ने देशभर में एक आंदोलन का रूप ले लिया। उन्होंने उन माता-पिता की पीड़ा को बाहर लाने में मदद की, जो न्यूरोडाइवर्सिटी से पीडि़त अपने बच्चों के लिए सामाजिक व आर्थिक पेरशानी उठा रहे थे। 45 वर्षीय मुग्धा कालरा ने कोविड के दौरान न्यूरोडाइवर्स बच्चों को समाज का हिस्सा बनाने के लिए न केवल जागरूकता लाना शुरू किया, बल्कि बच्चों को रोजमर्रा की जिंदगी चित्रों के माध्यम से समझाने के लिए देश की पहली कॉमिक स्ट्रिप भी बनाई। उनके प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहारा गया। वह कहती हैं कि शुरुआत 10 वर्ष पहले मेरे बेटे के स्कूल एडमिशन से हुई। तब आई मुश्किलों से न्यूरोडाइवर्सिटी का सामना कर रहे बच्चों और अभिभावकों के लिए काम करने की जरूरत महसूस हुई।

बेसहारा लड़कियों की मां डॉ. मिशेल

बेसहारा लड़कियों का सहारा बनीं अमरीका की डॉ. मिशेल हैरिसन 14 लड़कियों को गोद ले चुकी है। कोलकाता में 20 वर्षों से डॉ. मिशेल दिव्यांग और बेसहारा लड़कियों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे की कोशिश कर रही हैं। 82 वर्षीय हैरिसन बताती हैं कि 1984 में उन्होंने एक भारतीय लडक़ी को गोद लिया। इसके बाद अपनी बेटी को उसके देश और संस्कृति से परिचित करवाने के लिए वर्ष 2000 में भारत लेकर आई।

लेकिन यहां गोद लेने के नियमों, अनाथाश्रमों की स्थिति ने उन्हें स्तब्ध कर दिया। वह बताती हैं कि 2006 में उन्होंने एक संस्था के रूप में इन लड़कियों के लिए घर बनाया, लेकिन यह सफर उनके लिए आसान नहीं था, उन्हें इन लड़कियों को यहां रखने के लिए कई आर्थिक व सामाजिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। इन बच्चों की सहायता के लिए कई ऑफिसों में चक्कर भी लगाने पड़े। यहां वह बालिकाओं को शिक्षा के साथ जीवन में आगे बढऩे के स्किल्स भी सिखाती हैं, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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