चमत्कार: दुनिया में पहली बार जीन-एडिटिंग थैरेपी से नवजात का इलाज

फिलाडेल्फिया. जब एक मां की गोद में जन्म के कुछ ही दिनों बाद बीमारी से जूझता बच्चा हो और गूगल पर बीमारी का नाम खोजते ही सिर्फ ‘मौत’ या ‘लिवर ट्रांसप्लांट’ जैसे शब्द सामने आएं तो उम्मीद की कोई भी किरण किसी चमत्कार से कम नहीं लगती। अमरीका के फिलाडेल्फिया शहर में एक नन्हा शिशु केजे मॉलडून आज ऐसी ही एक उम्मीद की मिसाल बन गया है। वैज्ञानिकों ने उसके लिए एक ऐसा इलाज तैयार किया है जो पूरी तरह उसी के लिए बनाया गया था। एक ‘वन-ऑफ-ए-काइंड’ इलाज, जिसने चिकित्सा विज्ञान की सीमाएं तोड़ दी हैं।

नन्हा केजे मॉलडून, सिर्फ नौ महीने का मासूम अपने गोलमटोल गाल और नीली आंखों के साथ आज न केवल जिंदगी की जंग जीत रहा है, बल्कि पहला शिशु बन गया है जिसे दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी के लिए पूरी तरह से उसके लिए डिजाइन की गई जीन-एडिटिंग थैरेपी से इलाज मिला है। जन्म के कुछ ही दिनों बाद केजे को सीपीएस1 डिफिशिएंसी नाम की एक गंभीर और दुर्लभ बीमारी का पता चला। यह एक ऐसी अनुवांशिक स्थिति है जिसमें लिवर का एक अहम एंजाइम नहीं बन पाता, जिससे शरीर में विषैले तत्व जमा होने लगते हैं।

बदलेगी और भी मरीजों की जिंदगी

हमें उम्मीद है कि केजे एकमात्र ऐसा शिशु नहीं रहेगा। यह पर्सनलाइज्ड जीन-एडिटिंग भविष्य में और भी मरीजों की जिंदगी बदलेगी। -डॉ. रेबेका आरेन्स-निक्लास, बाल अनुवांशिक रोग विशेषज्ञ

परिवार की हिम्मत, विज्ञान की जीत

विशेषज्ञों का कहना है कि केजे की कहानी एक दुर्लभ बीमारी से जूझते बच्चे की नहीं, बल्कि विज्ञान, माता-पिता की उम्मीद व चिकित्सा नवाचार की संयुक्त शक्ति की कहानी है। वह मोड़ है जहां हर मरीज के लिए अद्वितीय इलाज होगा।

केजे की मां निकोल कहती हैं, ’जब हमने गूगल पर ’सीपीएस1 डिफिशिएंसी’ सर्च किया तो बहुत डर गए। डॉक्टरों ने हमें एक जोखिम भरा रास्ता सुझाया, एक बिलकुल नया और व्यक्तिगत इलाज, हमने इसे अपनाया। यह इलाज था सीआरआईएसपीआर-सीएएस9 तकनीक से जीन को एडिट करने का, जिसे 2020 में नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। यह एक तरह की ’मॉलिक्यूलर कैंची’ है जो डीएनए में गलतियों को काटकर सही करती है।

प्रयोग को मिले चमत्कारी नतीजे

केजे को दी गई दवा खास उसी के जीन म्यूटेशन के आधार पर बनाई गई थी। दवा ने कोशिकाओं में जाकर दोषपूर्ण जीन की मरम्मत शुरू की। इलाज के बाद केजे अब पहले की तुलना में ज्यादा प्रोटीन वाला भोजन कर पा रहा है, जो पहले मना था। उसे अब उतनी दवाइयों की जरूरत भी नहीं पड़ती। हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि इलाज की लंबी अवधि तक निगरानी जरूरी है, शुरुआती संकेत बेहद उत्साहजनक हैं।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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