रंजीता ने खेल को बनाया अपना साथी तो बदल गया जीवन, पढ़ें हौसलों की कहानी

रायपुर. कोंडागांव के घोर नक्सल इलाके धनोरा की रहने वाली 17 साल की रंजीता कुरेटी उन बच्चों के लिए मिसाल बनी है जो अनाथ होने पर हालात के चलते अभाव का जीवन जीते हैं। रंजीता ने अनाथ होने के बाद अपने जीवन में खेल को शामिल करके अपना जीवन बदल लिया। कोंडागांव के बालिका गृह में रहकर जूडो की नेशनल प्लेयर बनी और हाल ही में हुई खेलो इंडिया प्रतियोगिता में 52 किलोग्राम की कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता। अब भोपाल साई में प्रशिक्षण ले रही हैं। रंजीता के खेल की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी, बल्कि इसके लिए उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ी।
दौड़ने से सफर शुरू
रंजीता बताती हैं कि बालिका गृह यह सोचकर आई थी कि अब मुझे कुछ साल तक तो यहीं रहकर पढ़ाई करना है लेकिन खेल ने जीवन में एक नया परिवर्तन लाया। बालिका गृह में कोच नारायण सोरेन और जयप्रकाश ने जब दौड़ना शुरू कराया तो अच्छा लगने लगा, फिर तीरंदाजी और जूड़ो सीखने लगी तो मुझे जूडो में मजा आने लगा।

खेल की जानकारी होनी चाहिए
बच्चों को खेल के बारे में जानकारी नहीं रहती है। उन्हें खेल की जानकारी होनी चहिए और पढ़ाई के साथ ही कई तरह की एक्टिविटी करना चाहिए, क्योंकि इसके आपके सोचने की क्षमता बढ़ती है। सरकार हम जैसे बच्चों के लिए इतनी सुविधाएं दे रही है। इसकी भी जानकारी बच्चों को होना चाहिए।
दोनों बहन खेलने लगी
पिता के गुजरने के बाद जीवन बहुत कठिन हो गया था। मां भी उतना नहीं कमा पाती थी कि रंजीता और उसकी बहन को पाल सके। उस समय उसे बालिका गृह का साथ मिला और वहां रहकर वो खेलने लगी। छोटी बहन भी बिलासपुर में तीरंदाजी सीख रही है। मां ने दूसरी शादी कर ली।
साई में प्रैक्टिस करने लगी
रंजीता ने जब खेलना शुरू किया तो साल 2021 में ही राज्य स्तर पर मेडल जीतने लगी। जब स्टेट लेबल पर 5 वीं रैंक मिली को रंजीता का साई में सलेक्शन हो गया। पूरे 2 साल तक प्रैक्टिस के बाद इसी साल 4 से 7 मई तक बिहार के पटना में हुई खेलो इंडिया स्पर्धा के जूडो में 52 किलोग्राम की कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता। रंजीता अब इंटरनेशनल की तैयारी कर रही है। उसे ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाना है। इसके लिए वो कड़ी मेहनत कर रही है।