आचार्य विद्यासागर हुए ब्रह्मलीन, छत्तीसगढ़ में राजकीय शोक, पीएम मोदी ने ट्वीट कर जताया गहरा दुख
जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने आज रात 2.30 बजे संल्लेखना पूर्वक समाधि (देह त्याग दी) ले ली है। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली है। उनके ब्रह्मलीन होने से छत्तीसगढ़ में शोक की लहर दौड़ गई। प्रदेश सरकार ने आधे दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आचार्य श्री विद्यासागर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे।
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा। पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी। तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था। समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।
त्याग दिया था अन्न जल
आचार्यश्री पिछले कुछ दिन से अस्वस्थ थे। पिछले तीन दिन से उन्होंने अन्न जल का पूरी तरह त्याग कर दिया था। आचार्यश्री अंतिम सांस तक चैतन्य अवस्था में रहे और मंत्रोच्चार करते हुए उन्होंने देह का त्याग किया है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के अंतिम दर्शन के लिये डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी में बड़ी संख्या में उनके अनुयायियों का पहुंचना जारी है। जानकारी के अनुसार आज दोपहर में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
जैन मुनी आचार्य विद्यासागर महाराज कौन थे?
आचार्य विद्यासागर महाराज दिगंबर जैन समुदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे।उनकी उत्कृष्ट विद्वत्ता और गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए उन्हें व्यापक रूप से पहचाना जाता था
10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा में जन्मे आचार्य विद्यासागर महाराज ने छोटी उम्र से ही आध्यात्मिकता को अपना लिया था।
1968 में 22 वर्ष की आयु में, आचार्य विद्यासागर महाराज को आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा दिगंबर साधु के रूप में दीक्षा दी गई। 1972 में उन्हें 1972 में आचार्य का दर्जा दिया गया।
अपने पूरे जीवन में, आचार्य विद्यासागर महाराज जैन धर्मग्रंथों और दर्शन के अध्ययन और अनुप्रयोग में गहराई से लगे रहे।
वह संस्कृत, प्राकृत और अन्य भाषाओं पर अपनी पकड़ के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने कई ज्ञानवर्धक टिप्पणियाँ, कविताएँ और आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे।
जैन समुदाय के भीतर उनके कुछ व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त कार्यों में निरंजन शतक, भावना शतक, परीष जया शतक, सुनीति शतक और श्रमण शतक शामिल हैं।