वे गिरीं… संभलीं और अब इतिहास रच रही हैं, आगरा में अनोखा कॉफी हाउस चला रहीं एसिड पीड़िताएं

आगरा. पूरी दुनिया आगरा शहर में ताजमहल की खूबसूरती को निहारने के लिए आती है। इसी शहर में ताजमहल से कुछ दूरी पर एक ऐसी यादगार और है जो बेजान संगमरमर से नहीं, बल्कि दर्द के बाद उम्मीद और बेमिसाल इंसानी जज्बे से गढ़ी गई खूबसूरती है। यह यादगार है- ‘शिरोज कैफे’, जहां ताजी कॉफी के साथ परोसी गई हर मुस्कान में बेपनाह दर्द पर फतेह की गूंज होती है। यहां खूबसूरती के मायने चेहरे की चमक नहीं, वरन उन हाथों की ताकत है जो जिंदगी को राख से फिर से उठाते हैं।

‘शिरोज कैफे’ को वे महिलाएं संभालती हैं जिन्होंने खौफनाक एसिड हमलों को झेला है। ‘शी’ (स्त्री) और ‘हीरोज’ (नायकों) शब्दों से मिलकर बना ‘शिरोज’ नाम ही उन वीरांगनाओं का सम्मान है, जिन्होंने खुद पर हुए जुल्म के निशानों को अपनी पहचान नहीं बनने दिया। 2014 में यह कैफे पीड़ित महिलाओं को रोजगार देने के साथ उनकी गरिमा को वापस दिलाने के मकसद से शुरू किया गया। यहां 35 से अधिक महिलाएं सीधे काम करती हैं, जबकि 150 से ज्यादा घर से हस्तशिल्प बनाकर या सामान तैयार करके योगदान देती हैं। आगरा से शुरू हुई यह पहल अब आंदोलन बन चुकी है, जिसकी शाखाएं लखनऊ व नोएडा तक फैल गई हैं।

असली सुंदरता चेहरे में नहीं, कर्म में – डॉली: यहां काम करने वाली डॉली श्रीवास्तव की जिंदगी 10 साल पहले एसिड हमले के कारण तहस-नहस हो गई थी। महीनों तक घर की चारदीवारी में कैद रहकर वह हमले में बाहर व भीतर मिले जख्मों को सहलाती रहीं। एक दिन उसे शिरोज कैफे के बारे में पता चला तो वह यहां आ गई जहां उसे काम के साथ एक मकसद भी मिला। वह गर्व से कहती हैं, दस साल में मैंने अनगिनत लोगों की सेवा की और सीखा कि असली सुंदरता चेहरे में नहीं, कर्मों में होती है।

नौकरी नहीं, एक परिवार है शिरोज: दरअसल यह कैफे छाव फाउंडेशन के एक सपने की उपज था जिसने एसिड पीड़ित महिलाओं के बीच दो साल काम करने के बाद उन्हें आजीविका और गरिमा के लिए 2014 में शुरू किया गया। कईयों के लिए शिरोज सिर्फ नौकरी की जगह नहीं, बल्कि एक परिवार है। फाउंडेशन के निदेशक आलोक दीक्षित मानते हैं कि एसिड पीड़िताओं के पक्ष में कानून तो है लेकिन लेकिन यह सामाजिक समस्या भी है। पीड़िताओं की जिंदगी में सकारात्मकता लाना खास मकसद था। शुरुआत में थोड़ी मुश्किल हुई, लेकिन जल्द ही लोगों ने इसे अपनाया। यह सिर्फ कैफे नहीं, जागरूकता और सशक्तिकरण का जरिया है।

सिर्फ कॉफी नहीं, नाश्ता और लाइब्रेरी भी

शिरोज में कदम रखते ही आपको सिर्फ कॉफी और नाश्ते का मेन्यू नहीं मिलता। कैफे में पढ़ने के लिए विभिन्न प्रकार की पुस्तकें भी उपलब्ध हैं, जो आपको ठहरने और सोचने का न्योता देती हैं। एसिड हमले में गंभीर रूप से घायल होने के कारण कैफे में काम करने में असमर्थ महिलाएं विभिन्न वस्तुएं बनाती हैं। इन वस्तुओं की कैफे में प्रदर्शनियों के माध्यम से बिक्री होती है।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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