Arvind केजरीवाल जेल से सरकार तो चला ले रहे हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव कैसे लड़ेंगे?
फरवरी, 2025 में दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. देखा जाये तो चुनावी तैयारियों के लिए मुश्किल से 6 महीने का वक्त बचा है – आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल तो ये है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनाव कैंपेन के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार फिर से तिहाड़ पहुंच चुके हैं.
दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड पर अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. अरविंद केजरीवाल ने खराब सेहत का हवाला देते हुए जांच के लिए सात दिनों की अंतरिम जमानत की मांग की थी. कोर्ट ने ईडी की उस दलील को स्वीकार कर लिया जिसमें चुनाव प्रचार का हवाला देते हुए जमानत का विरोध किया गया था. ईडी का कहना था कि अरविंद केजरीवाल केजरीवाल की बीमारी इतनी गंभीर नहीं है कि उनको राहत मिल सके.
अदालत ने 14 दिन की न्याययिक हिरासत भी बढ़ा दी है, जिससे 19 जून तक अरविंद केजरीवाल को जेल में ही रहना होगा. जांच के लिए जमानत तो नहीं मिली, लेकिन कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को जरूरी मेडिकल टेस्ट कराने का निर्देश जरूर दिया है – और जेल अधिकारियों को हिदायत दी है कि न्यायिक हिरासत में अरविंद केजरीवाल की मेडिकल जरूरतों का ध्यान रखें.
दिल्ली के लोगों ने ‘जेल का जवाब वोट से’ इस बार तो नहीं दिया, अगली बार क्या होगा, फिलहाल सबसे बड़ा यही सवाल है. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली की चार सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन सभी जगह हार मिली.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार को लेकर मोटे तौर पर कम से कम दो कारण लगते हैं, जो दिल्ली के लोगों की अरविंद केजरीवाल की राजनीति से नाराजगी की बड़ी वजह हो सकते हैं. एक, स्वाति मालीवाल केस – और दो, अरविंद केजरीवाल को लेकर दिल्ली के लोगों का भरोसा कम हुआ है.
केजरीवाल को संदेह का लाभ नहीं मिल रहा है
पूरे चुनाव कैंपेन के दौरान अरविंद केजरीवाल दिल्लीवालों से कहते रहे कि अगर वे लोग इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट देकर जिता दें, तो उनके फिर से जेल जाने की नौबत नहीं आएगी – लेकिन दिल्लीवालों ने अरविंद केजरीवाल की बातें अनसुनी कर दी, चुनाव नतीजे तो यही बताते हैं.
2020 कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेता अरविंद केजरीवाल के आतंकवादियों से रिश्ता साबित करने की भरपूर कोशिश किये थे. तब तो अरविंद केजरीवाल के एक ही बयान का ऐसा असर हुआ कि चुनाव में उनकी जीत पक्की हो गई. अरविंद केजरीवाल का कहना था कि अगर दिल्ली के लोग उनको आतंकवादी मानते हैं, तो बीजेपी को वोट दे दें. और दो साल बाद पंजाब में भी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ वैसा ही कैंपेन फेल रहा. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई और भगवंत मान मुख्यमंत्री बने.
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भी रोड शो किया था, और पत्नी सुनीता केजरीवाल के साथ चुनाव प्रचार में भी बार बार खुद को जेल भेजे जाने की दुहाई दे रहे थे, लेकिन अब तो लगता है लोगों ने जरा भी परवाह नहीं की.
तो क्या बीजेपी ये नैरेटिव सेट करने में सफल हो रही है कि अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचारी हैं? ये तो है ही कि भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करने के बाद राजनीति में आये अरविंद केजरीवाल आज की तारीख में दिल्ली की शराब नीति केस में भ्रष्टाचार के ही आरोप में जेल भेजे गये हैं. उनसे पहले जेल भेजे गये राज्यसभा सांसद संजय सिंह तो बाहर आ चुके हैं, लेकिन उनके दो साथियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन अब भी जेल में हैं, और दोनो पर भ्रष्टाचार का ही इल्जाम है.
अब तो ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल को संदेह का लाभ नहीं मिल रहा है. बीजेपी नेताओं के जिन आरोपों को लोगों ने विधानसभा चुनाव में दिल्ली के लोगों ने नजरअंदाज किया, अब शायद उनको संदेह होने लगा है.
दिल्ली में AAP के उम्मीदवार हारे ही नहीं, प्रदर्शन में बीजेपी से बहुत पीछे रहे
दिल्ली में लगातार तीसरी बार सभी 7 लोकसभा सीटें जीत लेने के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं – और बीजेपी फिर से डबल इंजन की फिर से तैयारी शुरू कर रही है. 2022 के चुनाव में एमसीडी की सत्ता से बीजेपी को बाहर कर चुकी आम आदमी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव खुद दिल्ली पर पूरी तरह काबिज होने का बेहतरीन मौका था, लेकिन वो चूक गई.
पंजाब तो नहीं लेकिन हरियाणा और गुजरात के साथ साथ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था, जो काम नहीं आया. अब तो आप नेताओं बातों से तो लगता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 वो अकेले ही लड़ेंगे. आप नेताओं की बातों से ऐसा लगता है जैसे वो मान कर चल रहे हैं, लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल – ये दिल्ली का पैटर्न बन गया है.
कांग्रेस के लिए तीन सीटें छोड़ कर आम आदमी पार्टी दिल्ली की 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी – लेकिन चुनावी प्रदर्शन को लेकर जो रिपोर्ट आई है, वो आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बुरी है.
वैसे तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दिल्ली की सभी सीटों पर तीसरे पायदान पर पाये गये थे, लेकिन तब बहाना ये रहा कि कांग्रेस ने उनको पछाड़ दिया था. चुनावी गठबंधन के कारण जिन चार सीटों पर आम आदमी पार्टी लड़ रही थी, वहां तो बीजेपी से ही सीधा मुकाबला था. बीच में तो कोई भी नहीं था.
ये देखने को मिल रहा है कि दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों में 52 पर बीजेपी आगे रही है – 2015 में 67 और 2020 में 62 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी के लिए ये बिलकुल भी अच्छे संकेत नहीं हैं.