CG News: अमर प्रेम की एक अनूठी कहानी… प्रेयसी की याद में छह सौ साल से अर्पित कर रहे श्रद्धा सुमन
बस्तर दशहरा के विविध अनुष्ठान के साथ ही एक अमर प्रेम की एक अनूठी कहानी भी साथ-साथ चल रही है। इस कहानी के नायक हैं वारंगल के राजा अन्नम देव और नायिका हैं चित्रकोट के राजा हरीशचन्द्र की चौथी संतान राजकुमारी चमेली। चमेली के बारे में कहा जाता है कि वह सुंदर होने के साथ ही पढ़ाई व तलवारबाजी में निपुण थी। राज्य पर संकट आने पर पिता के साथ रणभूमि पर भी अपने युद्ध कौशल का परिचय देती थी। एक बार वारंगल के राजा अन्नमदेव अन्य राजाओं को हराते हुए चित्रकोट पहुंचा। यहां उन्होंने राजकुमारी चमेली के बारे में सुना तो राजा हरिशचंद्र के पास विवाह का प्रस्ताव भिजवाया। इस प्रस्ताव का जवाब नहीं मिलने पर अन्नमदेव ने चित्रकोट पर हमला बोल दिया।
पिता की याद में आग में कूदकर दे दी जान
बेलियापाल के मैदान में दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमें चमेली ने पिता का साथ दिया। युद्ध में राजा हरीशचन्द्र शहीद हो गए। इस बात का पता जब राजकुमारी को लगा तो उन्होंने पिता की याद में व्याकुल होकर आग में कूद कर अपनी जान दे दी। इस घटना की जानकारी होने पर वारंगल के राजा को बेहद अफसोस हुआ और उन्होंने अपनी प्रेयसी राजकुमारी की याद में चित्रकोट में नदी के किनारे उसकी समाधि बनवा दी। कहा जाता है कि अपने प्रेम को अमर व चमेली की वीरता का सम्मान करने के लिए वारंगल के राजा फूल रथ पर सवार होकर फूल अर्पित करते हैं।
छह सौ साल से अधिक समय से जारी है परंपरा
1408 ई. से बस्तर दशहरा की शुरुआत मानी गई है। फूल रथ की परिक्रमा शुरू होने के पहले इस रथ के ऊपर से फूल फेंके जाते हैं। इसमें से एक फूल चमेली के लिए अर्पित किया जाता है। यह फूल तत्कालीन राजा के घुड़सवार व पेगड परिवार के वंशज अपनी पगड़ी में समेट लेते हैं। वर्तमान में गंगाराम पेगड इसे निभाते हैं।
नौ दिनों तक फूलों को करते हैं एकत्रित
दशहरा के नौ दिनों तक एकत्रित इन फूलों को मावली मंदिर में ज्योति कलश के पास रखा जाता है। उत्सव के बाद इसे इंद्रावती नदी में प्रवाहित किया जाता है। यह फूल समाधि को स्पर्श कर जलप्रपात से नीचे गिर जाते है।
संवारा जा रहा है राजकुमारी चमेली का मठ: शहर से 40 किमी दूर चित्रकोट जलप्रपात के पास थाने के सामने मावली मंदिर है। यहां से करीब आधा किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी किनारे खेत में राजकुमारी चमेली की समाधि है। चित्रकोट में चमेली देवी की अश्वारुढ़ प्रतिमा स्थापित की गई है। इसके अलावा इसके समाधि स्थल को संवारने का काम शुरू किया गया है।
वीरांगना थीं चमेली
चित्रकोट की राजकुमारी चमेली देवी नाग वीरांगना थी। वर्तमान में उसकी समाधि का संरक्षण किया जा रहा है। बस्तर दशहरा में उसकी याद में फूल बंटोरने की परम्परा आज भी कायम है। रूद्र नारायण पाणीग्राही, लोक कथाकार