इतिहास और संस्कृति की झलक दिखाकर बस्तर के प्रति बढ़ाई जिज्ञासा
सरिता दुबे. बस्तर की बीते 10 वर्षों में तस्वीर बदल गई है और यहीं के लोगों ने यह काम किया है। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए आदिवासियों के तीज-त्योहार और पर्यटक स्थलों की जानकारियां दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाई। गीदम के रहने वाले ओमप्रकाश सोनी बस्तर के भूषण हैं। उन्होंने शोध पत्र, यूट्यूब चैनल, फेसबुक, इंस्टाग्राम के जरिए लोगों तक आदिवासियों के तीज-त्योहार के साथ बस्तर का इतिहास, वहां के गुमनाम पर्यटक स्थलों को देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंचाया है।
पेशे से असिस्टेंट प्रोफेसर ओमप्रकाश सोनी कहते हैं कि मैं बस्तर की सही तस्वीर लोगों तक पहुंचाना चाहता था। इस कारण पूरे बस्तर संभाग में घूम-घूमकर आदिवासियों के 100 से अधिक मेलों को अपने फोटोग्राफ और वीडियो में कैद किया और अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर साझा किया। अपनी फोटोग्राफी व लेखन से बस्तर के इतिहास की झलक दिखाई।
ओमप्रकाश ने बताया कि दस्तावेजीकरण के साथ बस्तर की संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला और फिर लगा कि बस्तर की संस्कृति को अन्य लोगों तक पहुंचाना होगा क्योंकि यहां के तीज-त्योहार और परंपराएं बहुत अनोखी हैं, जिसे सभी को जानना चाहिए। यहां के मंदिरों और मूर्तियों का इतिहास लोगों को बताने के लिए उन्होंने वीडियो और फोटोग्राफ से शुरुआत की और आज बस्तर में उनकी अलग पहचान बनी हुई है।
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गुमनाम पर्यटक स्थलों की जानकारी दी
ओमप्रकाश सोनी ने यहां के कई गुमनाम पर्यटन केंद्र जैसे हांदावाड़ा जलप्रपात, झारालावा, फुलपाड, मलंगीर, बीजा कसा की जानकारी लोगों को दी, जिनके बारे में लोगों को कम जानकारी थी। उन्होंने बस्तर के इतिहास, संस्कृति और स्थापत्य पर कई रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।