Chattisgarh की तीरंदाज राधो और तुलेशवरी को खेलना है ओलंपिक इसलिए मोबाइल से किया यह प्रयोग
पापा स्कूल में खाना बनाते है, मां मितानिन है।
यह कहानी दंतेवाड़ा में रहने वाली 2 लड़कियों की है जिन्होंने आर्थिक अभाव होने के बाद भी तीरंदाजी की राज्य टीम में अपना स्थान बनाया। इसके लिए दोनों ने मोबाइल और टीवी से दूरी बनाकर अपनी मंजिल पाई। अब उन्हें ओलंपिक में खेलना है।
मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से ही उड़ान होती है। यह पंक्तियां छत्तीसगढ़ की आदिवासी क्षेत्र की तीरंदाज राधो करताम और तुलेश्वरी खुसरो पर सटीक बैठती है। दोनों खिलाड़ी की आर्थिक रूप से बेदह कमजोर होने बावजूद वे अपने हौसलों के दम पर लक्ष्य को भेदते हुए आगे बढ़ रही हैं।
16 साल की खिलाड़ी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पदक जीत कर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में निशाना साधने की पात्रता हासिल की है।
दंतेवाड़ा की राधो और शिवतराई की तुलेश्वरी रायपुर के साइंस कॉलेज में चल रहे राष्ट्रीय सब जूनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता अब पदक जीतने के लिए अपना निशाना साधेंगी।
उन्होंने बताया कि हम खेल और पढ़ाई के लिए मोबाइल और टीवी से दूर रहते हैं, यही उनकी सफलता हासिल करने का राज है।
एक समय ऐसा भी था, दूसरों से धनुष मांग करती थीं प्रैक्टिस
दंतेवाड़ा की राधो करताम 12वीं की छात्रा है। वे बताती हैं, मैं अब तक दो नेशनल खेल चुकी हूं। गुजरात में हमारी टीम को ब्रांज मेडल मिला था। एक समय था जब हम पुराने धनूष से प्रैक्टिस किया करते थे। कई बार तो दूसरों से मांगना पड़ा था। अब हालात सुधरे हैं।
पापा स्कूल में खाना बनाते हैं और मम्मी आंगनबाड़ी में मितानिन हैं।
अगर अच्छी सुविधाएं मिलें तो हम जरूर खेलेंगी ओलंपिक
दोनों खिलाड़ियों का सपना देश के लिए खेलने का है। इसके लिए उन्हें ओलंपिक स्तर की सुविधाओं की जरूरत है। ओलंपिक में केवल रिकर्व राउंड की स्पर्धा होती है। इसके लिए उन्हें संसाधन की जरूरत है, जो बिना आर्थिक िमदद से संभव नहीं है। क्योंकि रिकर्व के संसाधन लगभग 3 लाख रुपए में मिलते हैं, जो राधो व तुलेश्वरी का परिवार खरीदने में सक्षम नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सुविधाएं मिले तो वे ओलंपिक तक सफर तय करेंगी। उन्होंने बताया कि वे आगे बढ़ने के लिए प्रतिदिन पांच से छह घंटे प्रैक्टिस कर रही हैं।