नारी शक्ति: अपनी पीड़ा भूल कर बच्चों को बना रही हैं आत्मनिर्भर
यह कहानी है भोपाल के नर्मदापुर की रहने वाली डॉ. भारती शर्मा की। जिन्होंने कई दुर्घटनाओं के बावजूद जीवन की कठिनाइयों को मात दी है। आज भी उनके पैर में लगी चोट उन्हें याद दिलाती है कि उन्होंने कितनी परेशानियों का सामना किया, लेकिन उनकी शक्ति और संकल्प ने उन्हें कभी हार मानने नहीं दी। डॉ. भारतीय ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को एक ओर रखकर बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने की ठानी है। आज उनके पढ़ाए हुए बच्चे आत्मनिर्भर बन गए हैं।
सुन कर की पढ़ाई
51 वर्षीय भारती कहती हैं कि 5वीं कक्षा में चोट के कारण आंख खराब हो गई थी, जिसके कारण 12वीं कक्षा तक मेरे कई ऑपरेशन किए गए। डॉक्टरों ने पढ़ने के लिए मना किया, लेकिन मैं सुन कर पढ़ती गई। इसके बाद कॉलेज के समय मेरा गंभीर एक्सीडेंट हो गया। फिर एक बार ऑपरेशंस का दौर शुरू हुआ। हालांकि आज मैं चल सकती हूं, लेकिन मेरे पैर का एक हिस्सा आज भी मुझे उस चोट की याद दिलाता है। फिर बीएड किया और कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हूं।
बाल मजदूरों को पढ़ाया
डॉ. भारती कहती हैं कि बीएड के दौरान मुझे नर्मदापुर से हौशंगाबाद प्रतिदिन आना-जाना पड़ता था। इस दौरान प्लेटफॉर्म पर बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और आज भी ऐसे बच्चों को पढ़ा रही हूं। साथ ही, गरीब बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पाठ्यसामग्री भी उपलब्ध करवाती हूं ताकि पढ़ने वाले बच्चे किसी तरह के अभाव में पढ़ाई से दूर नहीं होने पाएं।