Gandhi Jayanti 2024: बापू को लाने वाले सुंदरलाल शर्मा के परिवार को पूछा तक नहीं..
Gandhi Jayanti 2024: 155 वीं जयंती पर आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी याद किए जाएंगे। अफसोस! हमारी सरकार ने ऐसे मौकों पर होने वाले सरकारी कार्यक्रमों में उन पं. सुंदरलाल शर्मा के परिवार को कभी नहीं पूछा, जिन्हें देश के प्रति उनके त्याग और समर्पण के लिए छत्तीसगढ़ के गांधी की उपाधि से नवाजा गया। राज्य गठन के 24 सालों में पंडितजी के परिवार को स्वतंत्रता या गणतंत्र दिवस पर होने वाले सरकारी कार्यक्रम तक में नहीं पूछा गया। परिपाटी तो ये है कि जिलों में होने वाले सरकारी कार्यक्रमों में स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के परिवारों को बुलाकर समानित किया जाता है।
आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वालों में पडितजी का नाम शीर्ष पर आता है। राजिम से लगे चमसुर गांव में घर है। फिलहाल यह बुरी तरह जर्जर है। कोई नहीं रहता। उनके परपौत्र विकास शर्मा राजिम में रहते हैं। पेशे से शिक्षक हैं। परपौत्री पदमा दुबे भी यहीं रहती है। गरियाबंद जिला महिला कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष है।
लाइब्रेरी, 6 हजार किताबें तो सहेज लो
पं. सुंदरलाल शर्मा ने मिडिल तक पढ़ाई गांव में की। आगे की पढ़ाई घर बैठे हुई। अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, उडिय़ा जैसी भाषाएं उन्होंने घर में ही सीखी। किताबों से उनके लगाव का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि लाइब्रेरी खोलने के लिए उन्होंने उस समय के राजिम में सबसे ज्यादा फुटफॉल वाले सब्जी बाजार से लगे महामाया मंदिर के पास जमीन खरीदी थी। 120 साल पुरानी इस लाइब्रेरी में आज भी 6 हजार किताबें हैं। लाइब्रेरी भवन तो जीर्ण-शीर्ण होकर टूटने की कगार पर है। किताबें भी इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि पत्रे छूते ही फटने लगते हैं। जर्जर हालत के चलते इस लाइब्रेरी में करीब 30 सालों से ताला लटका है। बीच-बीच में परिवार वाले दरवाजा खोलकर सफाई कर देते हैं।
परपोती बोली- समान का मोह नहीं, विचार जिंदा रखें
बातचीत में शर्मा की प्रपौत्री पदमा दुबे ने बताया, आखिरी बार बड़े सरकारी कार्यक्रमों में दादाजी (नीलमणि शर्मा) को सरकारी कार्यक्रमों में बुलाया गया था। शायद 1992-94 में। फिर परिवार से किसी को नहीं बुलाया। उन्होंने बताया, पैतृक गांव चमसुर में हर साल ध्वजारोहण होता है। भाई वहां चले जाते हैं। रायपुर में सुंदर नगर के एक स्कूल से भी हर साल हमें न्यौता मिलता है। कभी-कभी में वहां चली जाती हूं। इन कार्यक्रमों में हम अपने परदादा को याद करते हुए आजादी की खुशियां मना लेते हैं। सेनानी परिवार की सरकारी उपेक्षा पर वे बोलीं, हमें समान की चाह नहीं है। बस इतना चाहते हैं कि आजादी के योगदान में परदादा का जो योगदान था, उसे लोगों तक पहुंचाया जाए। उनके विचारों से लोगों में राष्ट्रभक्ति जागे, इससे बढ़कर हमारे समान क्या होगा।