पर्यावरण से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान है ‘हरा सोना’
भारी मात्रा में बांस लगाने और रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ शहरों को हरा-भरा किया जा सकता है। पेयजल सहित कई पर्यावरण संबंधी समस्याओं से निपटा जा सकता है। बैम्बू सोसाइटी ऑफ इंडिया ने बेंगलूरु में पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान के लिए एक स्कूल से हाथ मिलाया है। शहर को बैम्बू सिटी के रूप में विकसित कर प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए बच्चे बांस के 30 हजार पौधे लगाएंगे।
प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली वास्तुकार नीलम मंजूनाथ के मुताबिक बेंगलूरु जलवायु कार्ययोजना के तहत बांस को भी अपनाए तो 2030 तक कार्बन-तटस्थ बन सकता है। बांस को हरा सोना कहा जाता है। इसका एक हवाई तना एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन पैदा कर सकता है। यह अन्य पेड़ों से 35% अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है।
बेंगलूरु में 2030 तक 1.7 लाख नए निर्माण प्रस्तावित हैं। इन परियोजनाओं में 30% कंक्रीट और स्टील को बांस से बदलने से कार्बन उत्सर्जन में 30 टन की कमी आ सकती है। पर्यावरणविद्, नौकरशाह, वैज्ञानिक, आर्किटेक्ट और संबंधित विशेषज्ञ बैम्बू सिटी प्रोजेक्ट सलाहकार समिति का हिस्सा हैं। बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) हर साल बांस के एक से दो लाख पौधे लगाना चाहती है।
सार्वजनिक स्वीकृति और जागरूकता जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि बैम्बू सिटी परियोजना आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक स्वीकृति व जागरूकता जरूरी है। लोगों को लगता है कि बांस की जड़ें गहरी होती हैं और इमारतों को नुकसान पहुंचाती हैं। यह मिथक है। एक और डर यह है कि बांस से आग का खतरा रहता है, लेकिन इस मामले में बांस अन्य लकड़ियों की तरह ही है।