बंदूक थामने वाले हाथ बना रहे होली का हर्बल गुलाल, ऐसे बदला खूंखार महिला नक्सलियों का जीवन

जिन हाथों से कभी खून की प्यासी बंदूकें नहीं उतरती थीं, उनमें अब प्राकृतिक रंगों की खुशबू है। ये कहानी पुलिस के आगे आत्मसमर्पण करने वाली उन खूंखार महिला नक्सलियों की है, जो बीजापुर जिले में भैरमगढ़ के कैंप में होली के लिए प्राकृतिक गुलाल तैयार कर रही हैं। शिविर में नक्सल पीडि़त महिलाएं भी हैं, जिन्हें या तो नक्सलियों ने गांवों से भगा दिया अथवा मुखबिरी के संदेह में इनके पतियों को मौत के घाट उतार दिया। पर्यावरण अनुकूल उत्पाद के जरिए इनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है। गौरतलब है कि प्रशासन ने सभी जिलों में ऐसी महिलाओं के लिए गुलाल के स्टॉल लगाने की पहल शुरू की है।
स्थानीय फूल-पौधों से होता है तैयार
मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह इतामपार की महिलाएं पारंपरिक ज्ञान और पद्धति से यह गुलाल तैयार कर रही हैं। समूह की अध्यक्ष फगनी कोवासी बताती हैं कि जब हमें गांव छोडऩा पड़ा, तो लगा जिंदगी खत्म हो गई, लेकिन अब यह समूह हमारी ताकत है। होली का यह रंग हमारे रूखे जीवन में भी रंग भरेगा, यही उम्मीद है। समूह की सचिव अनिता कर्मा बताती हैं, जब रंग बनाने का विचार अया तो सोचा क्यूं न प्राकृति रंग तैयार किए जाएं। यह सेहत और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और हमारी आय का जरिया भी बना।
प्रशासन का मिल रहा प्रोत्साहन, बाजार की तैयारी
मुख्य कार्यपालन अधिकारी पुनीत राम साहू कहते हैं कि यह पहल महिला सशक्तीकरण और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रयोग है। अगर रिस्पॉन्स अच्छा मिलता रहा, तो हम साल भर इन उत्पादों को बाजार से जोड़ेगे। बीजापुर प्रशासन ने इन महिलाओं का हौसला बढ़ाते हुए इनके उत्पाद को बढ़ावा देने का फैसला किया है। जिले के सभी प्रमुख कार्यालयों में इनके गुलाल के स्टॉल लगाकर अधिकारियों और कर्मचारियों से इसे खरीदने की अपील की गई है। इसके अलावा, पूरे बस्तर संभाग में इसे बेचने की कोशिश की जा रही है।
इसलिए खास है यह गुलाल
- यह गुलाल केमिकल-फ्री है और त्वचा के लिए भी सुरक्षित है।
- इसे बनाने में स्थानीय फूल और पौधों का इस्तेमाल हो रहा है।
- कीमत ज्यादा नहीं, आम आदमी की पहुंच में है।