Nari Shakti: माना अंग कमजोर हैं पर हिम्मत फौलाद सी है.. जानें विराली मोदी की कहानी

वे खुद व्हील चेयर पर रहने को मजबूर हैं, मगर इस स्थिति में भी दिव्यांग लोगों के अधिकारों की वकालत कर रही हैं। विराली मोदी के कुछ अंग भले कमजोर पड़ चुके हैं मगर हिमत फौलाद सी है। ये हैं भारत की पहली व्हीलचेयर मॉडल, दिव्यांगों के लिए आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और मोटिवेशनल स्पीकर विराली मोदी।
अपने टेड टॉक्स, विभिन्न सोशल मीडिया अभियानों और सामाजिक संस्थाओं से मिलकर विराली दिव्यांगता को मजबूरी से जोड़ने वाली रूढ़ियों और मिथकों को तोड़ने में लगी हुई हैं। वे समाज में ऐसा माहौल बना रही हैं जहां दिव्यांग लोगों की भावनाओं, उनके अधिकारों, मूल्यों और योगदान की हर कोई कद्र करे। वे इस बात पर जोर देती हैं कि उन्हें हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति पर लगाम लगे। ट्रेनों को दिव्यांगों के लिए सुगम बनाने के उनके अभियान #MyTrainToo का उद्देश्य भी यही है। शारीरिक रूप से असक्षम लोगों के लिए रेल यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उनकी याचिका पर छह लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं।
केरल के एक रेलवे अधिकारी ने उनके साथ मिलकर बिना किसी मरमत के नौ स्टेशनों को पूरी तरह से व्हीलचेयर के अनुकूल बनाया, पोर्टेबल रैंप और छोटे गलियारे के आकार की व्हीलचेयर उपलब्ध करवाए। दोनों ने स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से रेलवे कर्मचारियों को भी जागरूक किया। विराली दिव्यांग पैदा नहीं हुई थीं। 14 साल की उम्र में, वह 23 दिनों तक कोमा में रहीं और तीन बार मृत घोषित की र्गइं। इस उम्र में, उन्हें अपने जीवन के तरीके फिर से सीखने पड़े।
वे स्पाइनल कोर्ड इंजरी से पीड़ित लोगों के लिए भी काम कर रही हैं। अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद, विराली को अपने अस्तित्व पर गर्व है। 2017 में बीबीसी की 100 वुमन सूची में शुमार हो चुकी विराली बचपन में एक सक्रिय नर्तकी थीं। उनका काफी समय अमरीका में भी बीता है। वे अब एक प्रेरक वक्ता, दिव्यांगता अधिकार कार्यकर्ता और भारत की पहली व्हीलचेयर-उपयोग करने वाली मॉडल हैं। उन्होंने 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया। विराली सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और उनके काफी फॉलोअर भी हैं। उनका मानना है कि लोगों को दिव्यांगता के प्रति संवेदनशील बनाना सतत प्रक्रिया होनी चाहिए, जिससे दिव्यांग लोगों को अपनी व्यक्तिगत क्षमता हासिल करने में मदद मिलेगी। दिव्यांगता के बारे में समझ बढ़ाने के लिए काम करके, हम सभी के लिए अधिक समावेशी और समतापूर्ण समाज बना सकते हैं।