जिंदगी अगर हमें गिराती है तो उठने का मौका भी देती है: इशरत
चारों ओर रूह कंपाने वाली सर्दी, सेना के जवानों से घिरा गांव। ऐसे में एक निडर लड़की अपनी तैयारी के लिए निकल पड़ती है और सूरज की पहली किरण के साथ शुरू होता है उसका अभ्यास। हम बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर के बारामूला के बंगदारा की रहने वाली अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर खिलाड़ी इशरत अख्तर की। इशरत ने पत्रिका से विशेष बातचीत में कहा, इंसान को कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। अगर जिंदगी हमें गिराती है तो वह हमें उठने का मौका भी देती है।
छत से पांव फिसला और बदल गई जिंदगी
इशरत ने बताया कि 24 अगस्त, 2016 का दिन मैं कभी नहीं भूल सकती जब मैं छत पर टहल रही थी। अचानक मेरा पांव फिसला और मैं घर की बालकनी से नीचे जमीन पर आ गिरी। मेरी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई और मुझे दो साल तक बिस्तर पर रहना पड़ा। मैं दिव्यांग हो चुकी थी और इससे डिप्रेशन में आ गई। कई बार आत्महत्या का ख्याल मन में आता था। मेरी मां का देहांत हो चुका है और पापा ही मेरा सहारा हैं। इस कारण मैंने खुद को संभाला।
वो मेरी झोली में भीख डाल गए इशरत ने बताया कि मेरे साथ हुई दुर्घटना के बाद मैं दो साल तक कमरे में बंद रही। उसके बाद पापा मेरे लिए व्हीलचेयर लाए और मैं अस्पताल के लिए घर से निकली। तभी दो लड़के मेरे पास आए और दस रुपए का नोट मेरी व्हीलचेयर पर रख कर आगे बढ़ गए। मैं अवाक थी। कुछ पल के लिए मैं सन्न रह गई। मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया। उस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
सेना के जवान देख हम सब घबरा गए
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने की घोषणा के साथ ही वहां फोन और इंटरनेट बंद हो गए थे। ऐसे में इशरत का व्हीलचेयर बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया से संपर्क टूट गया। इशरत के कोच लुइस जॉर्ज और रिटायर्ड कर्नल आइसनहोवर थे। इशरत ने बताया कि लुईस सर ने मुझे ढूंढने के लिए आइसनहोवर सर को मेरी एक फोटो दी।
उन्होंने फिर जम्मू-कश्मीर पुलिस को जानकारी दी। उसके बाद सेना की एक टुकड़ी हमारे घर आई। हम सब घबरा गए कि क्या हुआ। सेना के अधिकारी ने बताया कि मेरा एशिया ओसनिया व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में चयन हुआ है। मैं पहली बार घर से अकेले निकली और सेना की टीम के साथ रवाना हुई और उन्होंने मुझे फ्लाइट से चेन्नई पहुंचाया।