कमार समुदाय में महिलाओं का कंघी करना मना था, धीरजा ने बदली महिलाओं की काया
जहां महिलाओं का कंघी करना मना था, वहां महिलाओं हो रही आत्मनिर्भर
विशेष पिछड़ी जनजाति(कमार) जो सिर्फ शराब बनाते थे, अब कर रहे खेती
Cg raipur gariyaband news गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड के मलियारी गांव में कुछ साल पहले तक कोई काम ही नहीं करता था। पहाड़ों के नीचे बसे इस कमार समुदाय का बाहरी दुनिया से कोई नाता नहीं था, लेकिन धीरजा बाई ने अपने समुदाय की काया ऐसी बदली की आज महिलाएं यहां पर काम कर रही है और पुरूष उनका हाथ बटांते है। विशेष पिछड़ी जनजाति(कमार) के ४५ परिवारों के इस गांव में महिलाओं को कंघी करना तक मना था। जीविका के लिए सभी वनोपज पर निर्भर थे। और शराब बनाने के अपने परंपरागत व्यवसाय करते थे। महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय थी।
शिक्षा भी इस समुदाय तक नहीं पहुंची लेकिन लोक आस्था सेवा संस्थान इनके बीच पहुंचा तो धीरजा बाई ने हिम्मत दिखाई, समुदाय से बाहर की दुनिया में आई और जाना की समाज कहां पहुंच गया है। फिर 35 महिलाओं को जोडक़र अपना लोक संगठन बना डाला। सरकारी योजनाओं को गांव तक पहुंचाया और लोगों को उससे जोड़ा। धीरजा की हिम्मत से ही यह संभव हो पाया।
पहली बार बाहर गई तो बैचेन हो गई
धीरजा बाई जब पहली बार बाहर निकली तो बहुत बैचेन हो गई थी क्योंकि कमार जनजाति भीड़भाड से दूर रहती है। वो संगठन के साथ गुजरात आई थी जहां पर महिलाओं के साथ होनी वाली हिंसा की जानकारी दी जा रही थी कि किस तरह इन हिंसा का विरोध करना है। जब धीरजा वापस अपने गांव आई तो उसने ठान लिया कि अब महिलाओं पर होने वाली हिंसा रोकना है, क्योंकि उस समय तक समुदाय के लोग, कोई काम नहीं करते थे केवल शराब बनाते और पीते थे। आसपास से आने वाले लोग उनसे शराब खरीदते थे, महिलाओं के साथ छेडछाड करना रेप करना सामान्य हो गया था। समुदाय के लोग थाने तक नहीं जाते थे और पुरूष दारू के नशे में ही रहते थे।
पुरूषों को समझाया
धीरजा बाई ने पहले तो 10 महिलाओं को जोड़ा और पुरूषों की बैठक बुलाई साथ ही यह भी कहा कि अब हम लोग शराब नहीं बनाएंगे, क्योंकि यह शराब हमारी बहनों के साथ अत्याचार बढ़ा रही है। पुरूषों ने भी बात को समझा, कुछ ने विरोध किया लेकिन बाद में सब ठीक हो गया। इस तरह परिवर्तन की शुरूआत हुई। सारी महिलाओं ने बीच गांव में सारे घरों से शराब निकालकर उसमें आग लगाई।
खेती शुरू कि साथ बांस के बर्तन बनाए
धीरजा बाई ने धान की खेती करना शुरू किया, गांव की सारी महिलाएं खेती करने लगी। अब गांव के सारे पुरूष भी खेत पर जाकर महिलाओं का हाथ बंटाने लगे। बाकी समय में महिलाएं बांस की टोकनियंा, पररा और सूपा बनाने लगी। इसमें भी पुरूष सहयोग करने लगे। इस तरह परिवर्तन की बयार कुछ ऐसी चली कि यह महिलाएं गांव के बाहर निकलकर अपने सामानों को बेचने भी लगी।
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