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International Deaf day: ऐसी भाषा जो बोलती नहीं, लेकिन समझती है…

हर साल 23 सितंबर को साइन लैंग्वेज डे मनाया जाता है, जो साइन लैंग्वेज के महत्व और इसके माध्यम से संचार की सुविधा को प्रदर्शित करता है। यह दिन उन लोगों के लिए समर्पित है जो साइन लैंग्वेज का उपयोग करके अपनी बात रखते हैं और समाज में अपनी पहचान बनाते हैं। यह एक ऐसी भाषा है जो बोलती नहीं, लेकिन समझती है। यह एक ऐसा माध्यम है जो उन लोगों को आवाज देता है जो बोल नहीं सकते। साइन लैंग्वेज डे पर हम उन लोगों की कहानियों को सुनाते हैं जिन्होंने इस भाषा के माध्यम से अपने सपनों को पूरा किया।

स्टार्टअप में डेफ एंड डब को रोजगार

इरफान अहमद ने अपने कैफे के स्टार्टअप में वे सिर्फ डेफ एंड डब लोगों को ही रोजगार दे रहे हैं। हालांकि शुरुआती तौर पर उनसे तालमेल बनाने में इरफान को बहुत समस्या आई। लेकिन उन्होंने यूट्यूब से साइन लैंग्वेज सीखकर इस परेशानी को दूर कर लिया। यहां ग्राहक पर्ची में लिखकर ऑर्डर देते हैं। डेफ एंड डब स्टाफ पर्ची के आधार पर ऑर्डर तैयार करते हैं।

पेंटिंग से मिला मुकाम, मेहंदी में भी महारत

दिव्यप्रकाश बचपन से ही बोल-सुन नहीं सकते। कोपलवाणी से साइन लैंग्वेज से 12वीं पास की। उसके बाद डीसीए किया। बचपन से ही उन्हें पेंटिंग का शौक था। पहली बार पेंटिंग कॉपीटिशन में वे राजभवन गए और पहला पुरस्कार हासिल किया। पेंटिंग के साथ ही रंगोली और मेहंदी लगाना सीखने लगे। एक बार उन्हें गुजरात में आयोजित राष्ट्रीय पेंटिंग प्रतियोगिता में जाने का मौका मिला जहां वे नेशनल लेवल में फर्स्ट पोजिशन मिली। इन दिनों वे दुल्हन मेंहदी, पेंटिंग ऑर्डर, रंगोली ऑर्डर लेने लगे हैं। लोग मोबाइल में इन्हें लोकेशन भेजते हैं और वे घर पहुंचकर ऑर्डर पूरा करते हैं। दिव्यप्रकाश ने अपनी बात लिखकर बताई कि जिस संस्थान ने मुझे काबिल बनाया, अब मेरा भी फर्ज है कि वहां के कुछ करूं। मैं छोटे बच्चों को साइनलैंग्वेज में पढ़ा रहा हूं। वे कहते हैं, मुझे मालूम है कि कमजोरी पर विजय कैसे प्राप्त की जाती है। मेरी कोशिश रहेगी कि बच्चों को पढ़ाकर उनके सपनों को पंख दूं।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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