जानिए, कैसे देश का सुरक्षा कवच तैयार करती हैं भारतीय वायु सेना की रक्षा प्रणालियां

हाल में ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना की उपलब्धियों और कामयाबी को लेकर हुई ब्रीफिंग के दौरान भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की तस्वीर साझा की गई, जिसमें युद्ध जैसी स्थिति में पाकिस्तान से आने वाले हवाई खतरों को रोकने के लिए तैनात वायु रक्षा प्रणाली की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग को दुनिया के सामने लाया गया। इस आधुनिक प्रणाली को वायु सुरक्षा संरचना की रीढ़ माना जा रहा है। आइए जानते हैं कि कैसे काम करती है यह प्रणाली:
आकाशतीर प्रणाली और आईएसीसीएस के साथ इसकी नेटवर्किंग
पहली सुरक्षा परत: काउंटर ड्रोन एंड एमएएन-पीएडीएस
दूसरी सुरक्षा परत: पॉइंट एयर डिफेंस और शॉर्ट रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइलें
तीसरी सुरक्षा परत: मीडियम रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइलें
चौथी सुरक्षा परत: लॉन्ग रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइलें
वायु रक्षा क्षेत्र में अहम कदम… बीते कुछ वर्षों में भारतीय वायुसेना ने हर मोर्चे पर वायु रक्षा प्रयासों को अपग्रेड किया है, जिसमें राडार और सतह से हवा में मार करने वाले ’गाइडेड वेपन’ प्रणालियों की उपस्थिति को बढ़ाया गया है, साथ ही आईएसीसीएस नेटवर्क में एकीकृत भी किया गया है। निकट भविष्य में आईएसीसीएस तीनों सेनाओं के और सुदृढ़ एकीकरण में मदद करेगा।

भारतीय वायुसेना के आधुनिक राडार… जिनमें हवा में रहने वाली राडार प्रणालियां एडब्लूएसीएस (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) और एईडब्लूएंडसी (एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल) और जमीनी राडार शामिल हैं – आईएसीसीएस नेटवर्किंग के साथ घुसपैठियों की पहचान, उनका पता लगाने और उन्हें निष्क्रिय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम… वायुसेना की इस प्रणाली को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने विकसित किया है। यह एक स्वचालित कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम है, जो थल, वायु और नागरिक राडारों, संचार केंद्रों व सेंसर से डेटा एकत्र कर एकीकृत रीयल-टाइम फ्रेमवर्क तैयार करता है। इसका उद्देश्य सैन्य कमांडरों को समग्र स्थिति की सटीक जानकारी देना है, ताकि कम समय में त्वरित प्रतिक्रिया दी जा सके।
बहुस्तरीय ड्रोन-रोधी और वायु रक्षा ग्रिड
इसी तरह भारतीय थल सेना ने भी आकाशतीर नामक प्रणाली विकसित की है, जो वर्तमान में सीमित पैमाने पर काम कर रही है। इसका उद्देश्य युद्ध क्षेत्र में निम्न स्तरीय हवाई क्षेत्र की निगरानी और जमीनी वायु रक्षा हथियारों का संचालन करना है। इसे आईएसीसीएस से जोड़े जाने की प्रक्रिया चल रही है ताकि वायुसेना और थलसेना की वायु रक्षा गतिविधियां समन्वित हो सकें।