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मेडिकल स्टूडेंट रोहन की बॉडी को पिता दान करना चाहते थे, डॉक्टरों ने कहा- जरूरत नहीं.. जानिए पूरा मामला

पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस सेकंड ईयर के छात्र रोहन बांधेकर की मौत के मामले में उनके पिता कोमल बांधेकर ने नया खुलासा किया है। उनके पिता का कहना है कि वे रोहन की बॉडी को मेडिकल कॉलेज में दान करना चाहते थे, लेकिन डॉक्टरों ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि कॉलेज में पर्याप्त डेडबॉडी है। डॉक्टरों ने ये भी कहा कि आंख व स्किन दान कर सकते हैं। इस पर रोहन के पिता ने कहा कि वे पूरी बॉडी दान करेंगे, केवल स्किन व आंख दान नहीं करेंगे।

19 जुलाई को मेजर हार्ट अटैक के बाद समय पर इलाज नहीं मिलने से 22 वर्षीय रोहन की आंबेडकर अस्पताल में मौत हो गई थी। रोहन के पिता ने बताया कि वे अपने बेटे का देहदान करना चाहते थे, लेकिन डॉक्टरों ने लेने से मना कर दिया। अब लगता है कि लापरवाही से हुई मौत को छिपाने के लिए ऐसा किया गया होगा? वे न केवल रोहन, बल्कि वे, उनकी पत्नी, माता-पिता व भाई की बॉडी भी दान करना चाहते हैं।

इसके लिए उन्होंने सिस बिलासपुर में संकल्प पत्र भी भरा है। उन्होंने ये संकल्पपत्र पत्रिका को भी भेजा है। उनका कहना है कि जवान बेटे की मौत से पूरा परिवार अभी भी नहीं उबरा है। वे चाहते थे कि उनके बेटे की असमय मौत तो हो गई है इसलिए वे देह दान कर मेडिकल स्टूडेंट्स को नई सीख देना चाहते थे। उनके बेटे की बॉडी को मेडिकल स्टूडेंट सीखने के लिए उपयोग करते।

इससे मौत के बाद भी उनके बेटे की बॉडी किसी के लिए काम तो आता, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें गुमराह किया और देहदान करने से मना कर दिए। लापरवाही से मौत के मामले की शिकायत राज्यपाल से लेकर सीएम, स्वास्थ्य मंत्री से भी की गई है। पिता कोमल का कहना है कि न्याय नहीं मिलने तक वे व समाज संघर्ष करते रहेंगे।

कहा था- 5 मिनट पहले लाते तो जान बचा लेते

सीपीआर देने के बाद भी जब रोहन की जान नहीं बची तो कैथलैब में डॉक्टरों ने कहा था कि 5 मिनट पहले लाते तो जान बचाई जा सकती थी। ये बयान रोहन के पिता कोमल के हैं। जबकि डॉक्टरों ने ही गोल्डन पीरियड का उपयोग नहीं किया और रोहन को इको टेस्ट के लिए ट्रामा से एसीआई, फिर सीपीआर देने के लिए फिर ट्रामा सेंटर ले गए। जबकि इको रूम से एसीआई स्थित कैथलैब लगा हुआ है।

प्रत्यक्षदर्शियों व कुछ डॉक्टरों के अनुसार, इको कराने के पहले ही रोहन गस्स खाकर गिर पड़ा था और वह ब्रेनडेड हो गया था। इसके बाद उसे सीपीआर दिया गया। यही नहीं एंजियोग्राफी भी की गई और टेंपरेरी पेसमेकर भी लगाया गया। विशेषज्ञों के अनुसार ब्रेनडेड मरीज की जान वापस लाना नामुमकिन है। ऐसे में 5 मिनट पहले लाने की बात हास्यास्पद था। ओपीडी में भी इलाज के लिए कोई कंसल्टेंट डॉक्टर नहीं था।

मेडिकल कॉलेज में किसी को भी देहदान से मना नहीं किया जाता, बशर्ते बॉडी लेने लायक हो। रोहन के देह दान संबंधी मामले की जानकारी नहीं है।

डॉ. जागृति अग्रवाल, एचओडी एनाटॉमी, नेहरू मेडिकल कॉलेज

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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