Nari shakti: डर हमारी सीमाएं तय करता है, जीत उन्हें तोड़ने से मिलती है

नई दिल्ली. मैं जम्मू के किश्तवाड़ जिले के लॉइधर गांव से हूं। जन्म से ही दुर्लभ फोकोमेलिया बीमारी के कारण मेरे दोनों हाथ नहीं हैं। इस वजह से लोग मुझे अक्सर बेचारी समझते थे। जब मैं 14 वर्ष की थी, इलाज के लिए बेंगलूरु गई। वहां मेरा कारगर इलाज नहीं हुआ, लेकिन मेरी जिंदगी जरूर बदल गई। मैंने पहली बार ऐसे दिव्यांगों को देखा और मिली, जो खेलों से देश का नाम रोशन कर रहे थे। यहीं मुझे तीरंदाजी के बारे में पता चला। धीरे-धीरे लोगों ने हौसला बढ़ाया, मदद की और मैंने खेलों के जरिए खुद की फिर से पहचान पाई।

किसी की मजबूरी का मजाक नहीं बनाएं

सच्ची भलाई के लिए कैमरे की जरूरत नहीं होती है। उसे चुपचाप कीजिए। कभी भी किसी की मजबूरी या पीड़ा को सोशल मीडिया पर दिखाना सही नहीं है। असली मदद दिखाई नहीं बल्कि महसूस की जाती है।

बातों से नहीं, अच्छे काम से जवाब दें

जब मैं दिव्यांगों से मिली, उनकी कहानियां सुनीं तो लगा कि जब वे कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती? तीरंदाजी शुरू की तो लोग ताने देते थे कि ये लड़की तीरंदाजी करेगी? तभी किसी ने कहा कि बातों से नहीं अच्छे काम से जवाब दो। अब ना तो मैं खुद को सीमित रखती हूं और न ही परिस्थितियों से जानी जाती हूं। मानसिक मजबूती के लिए जड़ों से जुड़ना जरूरी होता है। आप रास्ते से भटकते नहीं हैं। मैं युवाओं से कहना चाहती हूं कि अपने डर को उसकी सीमाएं तय न करने दें। डर को तोड़ने से ही जीत मिलती है।

कभी लोग मुझ पर हंसते थे बचपन में गांव वाले मेरे मम्मी-पापा को कहते थे कि ऐसी बेटी क्यों पैदा हुई, ताने मारते थे। मम्मी ये सुनकर अक्सर रोती थीं। पहले मुझे कोई नहीं जानता था, लेकिन तीरंदाजी में आने के बाद सब बदल गया। तीरंदाजी मेरे लिए खेल नहीं, पहचान भी है। लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। अगर मैं उनकी बातों में आ जाती, तो आज देश का नाम रोशन नहीं कर पाती।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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