Nari Shakti: महिलाओं के लिए खोले अभिनय के दरवाजे.. देश की पहली महिला फिल्म डायरेक्टर की कहानी
मेहनत के कारण वे फंतासी सिनेमा के लिए उदाहरण बन गईं। फातिमा कोहिनूर स्टूडियोज और इंपीरियल स्टूडियोज में अभिनेत्री के तौर पर काम करती थीं। भारतीय सिनेमा की पहली महिला निदेशक फातिमा बेगम का जन्म 1892 में हुआ था। उनका रुझान बचपन से ही अभिनय और चलचित्र की दुनिया की तरफ था। उन्होंने थिएटर का प्रशिक्षण लिया और शुरुआत उर्दू नाटकों से की। 1922 से उन्होंने फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया। सबसे पहले 1922 में उन्होंने मूक फिल्म ‘अभिमन्यु’ का निर्देशन किया।
1926 में उन्होंने फातिमा फिल्म्स की स्थापना की, जिसे 1928 में उन्होंने ‘विक्टोरिया-फातिमा फिल्म्स’ का नाम दिया। अपनी मेहनत के कारण वे भारत में फंतासी सिनेमा के लिए एक उदाहरण बन गईं। फातिमा कोहिनूर स्टूडियोज और इंपीरियल स्टूडियोज में एक अभिनेत्री के तौर पर काम करती थीं जबकि अपने प्रोडक्शन हाउस फातिमा फिल्म्स में वे अपनी फिल्मों में लेखन, निर्देशन, उत्पादन और अभिनय सब कुछ करती थीं।
भारतीय सिनेमा में वीएफएक्स का इस्तेमाल सबसे पहले करने वाली फातिमा बेगम ही थीं। जी हां, दक्षिण एशिया की पहली महिला निर्देशक फातिमा यह सब खुद करती थीं। उन्होंने ही आज से लगभग 100 साल पहले भारतीय दर्शकों को वीएफएक्स और साइंस फिक्शन जैसी नवीनतम चीजों का स्वाद चखाया। उन्होंने उस समय भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फिल्म भी बनाई।
फातिमा अपनी पहली फिल्म से बड़ी अभिनेत्री बन गई थीं। उनसे पहले पुरुष ही महिलाओं की भूमिका अदा करते थे। फातिमा ने महिलाओं के लिए अभिनय की दुनिया के दरवाजे खोल दिए। 1926 में अपनी पहली फिल्म ‘बुलबुल ए पेरिस्तान’ का निर्देशन किया। इसकी चर्चा दुनिया भर में हुई। यह भारत की पहली साइंस फिक्शन फिल्म थी। 1928 में उन्होंने फिल्म ‘रांझा’ और 1929 में फिल्म शकुंतला का निर्देशन किया। 1983 में 91 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।