Raipur Nagar nigam: भाजपा पार्षदों से ज्यादा नवनिर्वाचित महापौर मीनल को मिले वोट

नगर निगम चुनाव में भाजपा के महापौर प्रत्याशी मीनल चौबे की जीत ने एक नया रुख दिखाया है। महापौर के चुनाव में भाजपा ने अपने पार्षद प्रत्याशियों से भी बड़े अंतर से जीत हासिल की है। जबकि भाजपा के पार्षदों ने कुल 97751 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। वहीं, मीनल चौबे ने महापौर पद पर 153290 वोटों के अंतर से जीत प्राप्त की। यह अंतर इतना बड़ा है कि अगर भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों के जीत के अंतर को जोड़ा जाए, तो भी महापौर की जीत का आंकड़ा नहीं छू सकते।

भाजपा के 60 पार्षद प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 97751 वोटों का अंतर मिला, लेकिन महापौर के चुनाव में भाजपा को जो अंतर मिला, वह कहीं ज्यादा था। मीनल चौबे ने 153290 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, यानी भाजपा के पार्षद प्रत्याशियों से 55539 वोट ज्यादा मिले। यह आंकड़ा भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता और महापौर के लिए भाजपा द्वारा किए गए प्रचार की सफलता को साबित करता है।

नगर निगम के परिणाम के बाद अब भाजपा में मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) और जोन अध्यक्षों के चयन पर विचार किया जा रहा है। पार्टी के भीतर इस पद की दौड़ में कई प्रमुख नेता और पार्षद अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार एमआईसी और जोन अध्यक्षों के चयन में ओबीसी वर्ग और अनुभवी नेताओं को प्राथमिकता दी जा सकती है। इसके अलावा कुछ ऐसे नेताओं के नाम भी सामने आए हैं, जिन्होंने पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाई है।

अनुभवी नेताओं को मिल सकती है जगह

भाजपा के भीतर एमआईसी के लिए खासतौर पर उन पार्षदों को चुना जा सकता है, जो दूसरी या तीसरी बार चुनकर आए हैं। इसके अलावा ओबीसी वर्ग के नेताओं को भी एमआईसी में अधिक प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना है। सिख समुदाय के कुछ नए पार्षदों को भी जगह मिल सकती है। इसके अलावा बड़े नेताओं को हराने वालों को भी तवज्जो मिल सकती है। चर्चा है कि ओबीसी वर्ग और अन्य वर्गों को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिल सकता है। पार्षदों के अनुभव और काम के आधार पर चयन की प्रक्रिया होगी।

क्या यह ट्रेंड भविष्य में भी रहेगा?

परिणाम से यह भी स्पष्ट होता है कि मतदाता अब महापौर पद के लिए पार्षद चुनाव से अलग मानसिकता से वोट कर रहे हैं। नगर निगम के प्रशासन और बड़े फैसलों में महापौर की भूमिका को जनता ने ज्यादा अहमियत दी है। यही कारण है कि भाजपा को पार्षदों से ज्यादा महापौर पद पर समर्थन मिला। भविष्य में इस तरह की चुनावी प्रवृत्ति क्या बरकरार रहेगी, यह देखने वाली बात होगी।

लेकिन इस बार के परिणाम यह संकेत देते हैं कि महापौर पद पर वोङ्क्षटग पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। दिलचस्प बात यह है कि नोटा के तहत 5432 लोगों ने वोट डाला। यह दर्शाता है कि रायपुर के कुछ मतदाता महापौर चुनाव के दौरान कुछ नया विकल्प चाहते थे। अगर भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों के जीत के अंतर को जोड़ा जाए, तो भी महापौर महापौर प्रत्याशी मीनल चौबे को 40740 वोट कम मिले हैं।

बड़ी बढ़त के साथ जीत

नगर निगम चुनाव में महापौर पद की प्रत्याशी को अकेले 3 लाख 15 हजार 835 वोट मिले, जबकि 70 पार्षद प्रत्याशियों को कुल 2 लाख 63 हजार 690 वोट मिले। यह नतीजे महापौर के पक्ष में मजबूत जनसमर्थन को दर्शाते हैं, जिससे उनकी जीत बेहद प्रभावशाली रही।

अगर हम कांग्रेस की बात करें, तो कांग्रेस के 7 पार्षद प्रत्याशियों ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों को 6147 वोटों के अंतर से हराया। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशियों की भी अपनी जीत के आंकड़े रहे, जिसमें 3 निर्दलीय प्रत्याशियों ने 3420 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि महापौर चुनाव में भाजपा के वोट बैंक में बहुत मजबूत पकड़ बनी हुई थी।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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