भिखारी बनकर पहुंच गए थे अयोध्या, सैकड़ों को मरते देखा फिर भी डटे रहे
एक दिन वे अचानक आए और कहने लगे मुझे अयोध्या निकलना है। शाम का वक्त था, मना किए तब भी नहीं माने, दो जोड़ा कपड़ा और एक कंबल लेकर निकले पड़े। वहां गोली-बारी में कई साधु-संत और हजारों कार सेवकों की मौत की खबरें आतीं थीं, कभी अनहोनी होने का ख्याल भी आता था, लेकिन हमें भगवान प्रभु श्रीराम पर विश्वास था कि वे जरूर आएंगे। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के टूटने की खबर आई। इसके बाद वे लौटे। स्टेशन से उन्हें लोगों ने कंधे पर बिठाकर लाया। जगह-जगह स्वागत सत्कार हुआ। उन्हें देखकर आंसू नहीं रूक रहे थे। यह पूरी कहानी हमें बताई कार सेवक स्वर्गीय रामकृष्ण निर्वाणी की धर्म पत्नी 72 वर्षीय बसंतलता निर्वाणी ने।
10 जून 1942 में जन्में स्व. रामकृष्ण ने एलएलबी (वकालत) की पढ़ाई की। 15 साल की उम्र से आरएसएस से जुड़ गए थे। छत्तीसगढ़ में आरएसएस की स्थापना में उनकी अहम भूमिका थी। पूरा जीवन परोपकार और सेवा में गुजार दी। आरएसएस से जुड़े होने के कारण जीवनभर उन्होंने हॉफ पैंट पहनी। अयोध्या में भगवान राम लला की मंदिर बनाने का संकल्प लेकर लौटे, लेकिन 65 साल की उम्र में 19 नवंबर 2007 को वे कैंसर से जिंदगी की जंग हार गए।
19 महीना जेल में काटे
इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाए गए अपातकाल का विरोध करने के जुर्म में रामकृष्ण निर्वाणी व उनके छोटे भाई को 10 महीने की सजा हुई। कोर्ट में इसकी सुनवाई के दौरान तानाशाही नहीं चलेगी का नारा लगाने के जुर्म में सजा को नौ महीने और बढ़ा दी गई, तो इस तरह उन्हें 19 महीने जेल में काटना पड़ा।
रामकृष्ण की पत्नी व बेटे ने बताया कि जब उन्हें कैंसर की समस्या हुई तो उनका इलाज एम्स में कराने उन्हें बुलाया गया, लेकिन वे उन्होंने मना कर दिया। उन्हें डॉ. रमन सिंह के कहने पर लेने के लिए कोमल सिंह राजपूत, खूबचंद पारख, अशोक शर्मा, लीलाराम भोजवानी (अब स्व.) भी घर पहुंचे थे, लेकिन इससे पहले वे ये कहकर निकल गए कि मुझे इंदिरा गांधी नहीं ढूंढ पाईं तो आप लोग क्या ढूंढोंगे।
कंबल ओढ़कर आगे बढ़ गए
रामकृष्ण निर्वाणी जब अयोध्या गए थे तब पुत्र मनोज निर्वाणी की उम्र महज 8 वर्ष थी। मनोज ने बताया कि पूरे सवा महीने बाद जब पिता लौटे, तो उन्होंने बताया कि यहां से ट्रेन पकड़कर वे अयोध्या के लिए निकल पड़े थे, लेकिन 100 किमी पहले ही पुलिस लोगों को वहां जाने से रोक रही थी। लाठी-डंडे और गोली तक बरसा रहे थे। ऐसे में उन्होंने ओढ़ने के लिए रखे कंबल को सिर पर डालकर भिखारी होने का नाटक करते हुए कई किमी पैदल चलकर अयोध्या तक पहुंच गए, लेकिन मंदिर तक पहुंचना मुश्किल था। उन्होंने बताया था कि कई लोगों की उनके सामने ही मौतहो गई। इसके बाद भी वे सात दिनों तक बाबरी मस्जिद के पीछे छिपे रहे और बाबरी मस्जिद का विध्वंस होने के बाद बचते-बचाते लौटे।
कार सेवक किसे कहते हैं
कार का अर्थ होता है हाथ यानी जो हाथ से काम नि:स्वार्थ व नि:शुल्क परोपकार करते हैं, उन्हें कार सेवक कहा जाता है। चूंकि भारत में ज्यादातर कार्य धर्म से जोड़कर ही किए जाते हैं, इसलिए कार सेवक शब्द का अर्थ धार्मिक कार्यों को नि:स्वार्थ और नि:शुल्क करने वाले व्यक्ति के लिए भी किया जाता है।