नारी शक्ति: हौसलों की आंखों से पढ़ यवनिका बनीं जज, पढ़ें कामयाबी की अनोखी कहानी

मैं दृष्टिबाधित हूं, ये शुरू से ही मेरे लिए चैलेंजिंग है। हर जगह अपनी जगह लेना हर समय चैलेंज की तरह होता है। लोग भी कहते थे कि डिसेबिलिटी होने के बाद काम कर पाएंगी कि नहीं। लेकिन, मैंने कभी अपने आपको किसी से अलग नहीं देखा, सबके साथ नॉर्मल रहीं। बस अंतर यही रहा कि जो मैं करती उसे दूसरे अलग तरीके से करते। यह कहना है यवनिका का। नवा रायपुर स्थित हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा यवनिका दिल्ली जूडिशिअल सर्विस एग्जाम क्लियर कर जज बन गई हैं। यवनिका संभवत: पहली लड़की है जो देख नहीं सकतीं और जज बनीं। दृष्टिबाधिता को उन्होंने कभी कमजोरी नहीं समझी और कोर्ट तक गईं। यवनिका दिल्ली की हैं और रायपुर से एलएलबी व बेंगलूरु से एलएलएम किया।

ब्रेल लिपि में तैयार करती थीं नोट्स

यवनिका ने बताया कि मैंने जज बनने के लिए 2021 से ही तैयारी शुरू कर दी थी। नार्मल नोट्स तो दोस्तों से मिल जाते, लेकिन मेरी पढ़ाई ब्रेल लिपि से हुई, जिसके कारण मुझे काफी दिक्कतें भी हुईं। नोट्स बनाने के लिए मुझे खुद से नोट्स ब्रेल लिपि में टाइप करने पड़ते थे और फिर पढ़ाई करती थी। ऑनलाइन मटेरियल, ऑडियो और पीडीएफ से पढ़ाई करती थी।

हर मोड़ पर साथ खड़ी रहीं मां

यवनिका ने बताया कि मां प्रोमिला सिंह हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। मैं जो भी हूं मां और पापा कुलदीप सिंह की वजह से ही हूं। मां ने बीएड किया था, मुझे देखकर उन्होंने स्पेशल बीएड किया, ताकि मेरा याल रख सके। मां एक स्कूल में टीचर थीं, लेकिन जब मुझे एलएलबी करने के लिए शहर से बाहर जाना था तो उन्होंने जॉब छोेड़ दी। एचएनएलयू मैनेजमेंट ने हमें अलग क्वार्टर दिया था। वहां मां को हर जगह आने-जाने की परमिशन थी। वो हर पल मेरे साथ रहती थीं। वहीं, बेंगलूरु में एलएलएम के दौरान भी साथ रहने की अनुमति थी। प्रोमिला सिंह ने बताया कि यवनिका प्री-मैच्योर पैदा हुई थीं। उसे ऑक्सीजन में रखना पड़ा था, जिसके कारण उसकी आंखों के पर्दे सिकुड़ गए और वह देख नहीं पाई।

मां मेरे साथ हमेशा खड़ी रहीं

यवनिका ने बताया कि मां प्रोमिला सिंह हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। मैं जो भी हूं मां और पापा कुलदीप सिंह की वजह से ही हूं। मां ने बीएड किया था, मुझे देखकर उन्होंने स्पेशल बीएड किया, ताकि मेरा याल रख सके। मां एक स्कूल में टीचर थीं, लेकिन जब मुझे एलएलबी करने के लिए शहर से बाहर जाना था तो उन्होंने जॉब छोेड़ दी। एचएनएलयू मैनेजमेंट ने हमें अलग क्वार्टर दिया था। वहां मां को हर जगह आने-जाने की परमिशन थी। वो हर पल मेरे साथ रहती थीं। वहीं, बेंगलूरु में एलएलएम के दौरान भी साथ रहने की अनुमति थी। प्रोमिला सिंह ने बताया कि यवनिका प्री-मैच्योर पैदा हुई थीं। उसे ऑक्सीजन में रखना पड़ा था, जिसके कारण उसकी आंखों के पर्दे सिकुड़ गए और वह देख नहीं पाई।

लोग चिढ़ाते भी थे। मुझे फर्क नहीं पड़ा

यवनिका ने बताया कि एलएलबी, एलएलएम करने की बात जब मैं किसी से कहती थी तो लोग कहते थे कि तुम देख नहीं सकती, नहीं कर पाओगी। लेकिन मैंने हमेशा ऐसी बातों को अनसुना ही किया। एलएलबी करने जब मैं दिल्ली से रायपुर आईं तो लोगों ने कहा, बाहर क्यों जा रहे हो, कैसे कर पाओगी। लोग चिढ़ाते भी थे। मुझे फर्क नहीं पड़ा, अब तो मुझे आदत हो गई है। लेकिन जब पढ़ाई में रैंक अच्छी आती गई तो लोग मेरे साथ अच्छा व्यवहार करने लगे। मैंने नार्मल स्कूल, कॉलेज में पढ़ाई की, खुद की जरूरतों के लिए लोगों को समझाती थी। मैं एक बार किसी जज से मिली, मैंनेे कोर्ट का प्रोसेस देखा, जो मुझे अच्छा लगा। जज ने मुझसे कहा तुम कैसे बनोगी, लेकिन मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। लॉ की पढ़ाई के दौरान ही लगने लगा था कि मैं जज बन सकती हूं और मैं बन गई।

प्रश्नपत्र ब्रेल लिपि में जारी करने कोर्ट गई

यवनिका ने बताया, समस्या थी कि प्रश्नपत्र में बड़े-बड़े सवाल को मैं कैसे पढ़ूंगी। कोर्ट के एक फैसले के अनुसार अभ्यर्थी को जो लैंग्वेज आती है उसी भाषा में वो पेपर दे सकता है। मुझे ब्रेल लिपि आती है, इसलिए मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में रिक्वेस्ट किया। उसके बाद मेरा प्रश्नपत्र ब्रेल लिपि में आया। ऐसा पहली बार हुआ, जब पेपर ब्रेल लिपि में जारी किया गया। एग्जाम में मेरे कप्यूटर में स्पेशल ऐप भी डाउनलोड किया गया और मेरे साथ एक आईटी पर्सन भी बैठा था ताकि कोई दिक्कत न हो।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
Back to top button