अबूझमाड़ की सरिता ने मल्लखंब में दिलाई छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय पहचान
मल्लखंब में बस्तर अव्वल क्योंकि वहां के बच्चों का आई क्यू लेबल बहुत अच्छा है
Cg Bastar News मल्लखंब एक ऐसा खेल, जिसे पॉवर गेम और पुरुषों के खेल के रूप ज्यादा पहचाना जाता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के धुर आदिवासी क्षेत्र नारायणपुर जिले की बालिका खिलाड़ी सरिता ने इस खेल से प्रदेश को राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। अबुझमाड़ के ओरझा गांव की मात्र 14 साल की सरिता पोयम ने छोटी सी उम्र में मल्लखंब खेल में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है। साथ ही इस खेल में महिलाओं को भी आगे आने के लिए प्रेरित किया है।
सरिता ने हरियाणा में खेलो इंडिया में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीतकर अपने प्रदेश की राष्ट्रीय पहचान बनाई। इसी के साथ सरिता ने मई में भूटान में होने वाली वल्र्डमल्ल्खंबचैपियनशिप में खेलने की पात्रता हासिल कर ली। सरिता 10 साल व कक्षा 5 की उम्र से मल्लखंब खेल का प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं।
धुर आदिवासी क्षेत्र में रहता है परिवार
सरिता का परिवार अबूझमाड़ के अंदर रहता है, पिता नौकरी करते है। घर में मां और छोटा भाई है । सरिता बताती हैं, जब पोर्टा केबिन स्कूल पढऩे आई तब मुझे खेल के संबंध कोई ज्ञान नहीं था। यहां पर मुझे मेरे कोच मिले और उन्होंने इस मल्लखंब खेल के बारे में बताया और प्रशिक्षण लेने को बोले। धीरे-धीरे इस खेल में मेरी रूचि बढ़ती गई और अब तो इसी खेल में मैं अपने देश व प्रदेश का नाम रोशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करना चाहती हूं। इस खेल में जुडऩे के बाद भविष्य में मुझे बड़ा करना है।
आई क्यू जिनका अच्छा, वही मल्लखंब का खिलाड़ी
सरिता के कोच एसटीएफ ( स्पेशल टॉस्क फोर्स) के जवान मनोज प्रसाद इस खेल के संबंध में बताते है कि जिन बच्चों का आई क्यू लेबल ऊंचा होता है वे ही मल्लखंब के खिलाड़ी बन सकते है। इसका कारण है कि इसमें खेल में ही फोकस करने वाले बच्चे ही अच्छा कर पाते है। मल्लखंब ऐसा खेल है, जो भारतीय संस्कृति को दर्शाता है साथ ही इसमें शरीर के कई जरूरी व्यायाम शामिल हैं। यह बहुत महंगा खेल भी नहीं है।
अपने पैसा से शुरू की अकादमी
एसटीएफ के जवान मनोज प्रसाद ने अपनी सर्विस के दौरान ही मल्लखंब सीखा था, उसके बाद उन्होंने महसूस किया कि अबूझमाड़ के बच्चों के लिए इससे अच्छा खेल हो ही नहीं सकता, बस उसी के बाद उन्होंने अपने खर्चे से नारायणपुर में अकादमी बनाई और २५ बच्चों को अपने पास रखा, जिन्हें वे मल्लखंब सिखाते है। साल 2016 से वे बच्चों को सिखा रहे है अभी उनके पास अब 100 बच्चे है।