पति की मार को समझती थी कि पति का हक है, लेकिन अब पति को समझा रही
अपने अधिकार को जाना तो पहुंची कॉस्ट पंचायत में, कर रही निर्णय
CG NEWS Janjgir chapa कुछ साल पहले तो जांजगीर चापा जिले के डबरा और सक्ती की महिलाओं को लगता था कि पति की मार सामान्य बात होती है और यह तो पति का अधिकार होता है। यहां महिलाएं वोकल तो थी, लेकिन उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं थी इस कारण वे अपने साथ हो रहे अत्याचार का विरोध भी नहीं करती थी, लेकिन अब यहीं महिलाएं खुल कर अपने अधिकारों की बात कर रही है। कॉस्ट पंचायतो में अब महिलाएं भी सदस्य बन रही है वे पंचायत में आकर अपनी बात कहती है पहले तो बिना महिला की बात सुने पंचायत फैसला सुना देती थी, लेकिन अब पूरा माहौल ही बदल गया है।
वैसे तो टीवी, और फिल्म भी महिलाओं को उनके अधिाकरों की जानकारी देने का काम करते है, लेकिन जमीनी स्तर पर उसे लागू करना इतना आसान नहीं होता। सक्ती ब्लॉक में निवेदिता फाउंडेशन महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग कर रहा है साथ ही महिलाओं को कानूनी सलाह भी दे रहा है। फाउंडेशन की क्षिप्रा डेविड कहती हैं कि अब महिलाएं अपने काम में भागीदारी भी तय करती है।
अधिकार दिलाने के साथ बना रही आत्मनिर्भर
क्षिप्रा ने बताया कि साल 2005 से वे इस क्षेत्र में काम कर रही है पहले जब हम महिलाओं के अधिकारों की बात करते थे तो हमें सक्ती के ही पुरूषों का सामना करना पड़ा। वे बताती हैं कि महिलाओं को घरेलू हिंसा के अधिनियम के तहत ही वे न्याय दिलाने की कोशिश करती हैं, जिससे वे अपने ही घर में रहकर सुरक्षित रह सके। पीडि़त महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उन्हें सर्फ बनाना, हैंडवाश बनाना, हल्दी, मिर्ची की पैकिंग, वर्मी कम्पोस्ट बनाना और सरकार की कौशल विकास योजनाओं से जोड़ती है जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत बने।
दलित बाहुल्य इलाका, महिलाएं वोकल तो है लेकिन चुप
जांजगीर चापा दलित बाहुल्य इलाका है और यहां पर महिलाएं वोकल तो है लेकिन अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होने के कारण वे चुप रहती थी पति की मार को पति का अधिकार समझती थी। महिलाएं सिर्फ खेतों में ही काम करती थी। वे अपने हुनर को समझ नहीं पा रही थी हमने जब उन्हें ट्रेनिंग दी तो वे खुद समझ नहीं पाई कि वे हर वो काम कर सकती है।
क्षिप्रा डेविड, निवेदिता फाउंडेशन
ग्रुप बनाकर देते है जानकारी
जांजगीर चापा में एक काउंसिलिंग सेंटर बनाया है जहां थानों में आने वाले महिलाओं के मामलों में काउंसिलिंग करते है। अपने अधिकारों की जानकारी देने के लिए निवेदिता फाउंडेशन चार ग्रुप बनाकर काम करता है। लडक़ो और लड़कियों का एक-एक ग्रुप जिसमें 14 से 20 साल तक की उम्र वाले लडक़ेऔकलडकियां शामिल रहती है। इसी तरह एक ग्रुप 19 से 25 साल और महिलाओं का एक ग्रुप होता है इस तरह इन चार ग्रुप में बारी-बारी से सभी को अपने अधिकारों की बात बताई जाती है।