लिपस्टिक और हाई हील्स से ऊपर उठकर कुछ करना चाहती थी तो बन गई बाइकर
अजब-गजब चुनौतियां जब हौसला बन जाती है तो मिलती है सफलता
टी. हुसैन राजिमवाले
Kavardha news एक महिला राइडर के जीवन में बहुत ही अजब -गजब चुनौतियों आती है और इसे ही जब वो अपना हौंसला बना लेती है तो भीड़ से अलग पहचान बनती है। 24 साल की उम्र में (फस्ट इनिंग में) बाइक चलाना सीखा। बीच में कुछ साल राइडिंग से दूर रही। वापस 35 की उम्र से शुरू किया। छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र, ओडिसा और मध्यप्रदेश के शहरों की दूरियां अपनी बाइक से तय करने वाली दीप्ती राज का नाम छत्तीसगढ़ में गिनी-चुनी वुमंस बाइकर्स में शुमार है। कवर्धा की रहने वाली दीप्ति कहती हैं कि, हमारे समाज मे जब तक आपको या आपके काम को कोई पहचान नहीं मिलती, तब तक लोग आपको बहुत हल्के में लेते हैं। मुझे भी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
हजारों किलोमीटर की दूरी बाइक से तय करने वाली दीप्ति का सबसे अच्छा राइडिंग अनुभव बस्तर का है। वो कहती हैं कि, खुद पर विश्वास, जिम्मेदारी की भावना, उसके साथ मेहनत, अनुशासन, धैर्य और एक अच्छी सी मोटरसाइकिल। हो बस एक बार शुरुआत होने की देर है फिर आपको उडऩे से कोई नहीं रोक सकता।
मौके मिले तो अपनी क्षमताओं को अजमाओं
दीप्ति कहती हैं कि, मैं बचपन से ही लिपस्टिक और हाई हील्स से ऊपर उठकर कुछ करना चाहती थी। इस विचार ने मुझे खुद को सीमित करने से बचाया। मुझे जीवन मे बहुत मौके मिले जिनमें मैंने खुद की क्षमता को आज़माया।
सबसे पहली चुनौती तो लडक़ी होना है। अब तो खैर समाज का नज़रिया बदल रहा है, उस वक्त लोग एक कुंठित मानसिकता से घिरे थे। सलवार दुपट्टा, शर्म इन अपेक्षाओं के विरुद्ध जाकर कुछ करने का मतलब था कि आप समाज विरोधी हो। मेरे पड़ोसियों को लगता था मैं बिगड़ी हुई लडक़ी हूं। लडक़ों की बराबरी करती हूं। बड़ी हिम्मत से इन सब से ऊपर उठो तो सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगता था।
पहले तो अपना ही परिवार विरोध करता है
हमारे यहां महिलाएं सामाजिक अपेक्षाओं और मानसिकता से बाद में हारती हैं, पहले तो अपने ही परिवार के विरोध का सामना करना होता है। लोग किसी भी बदलाव को थोड़े देर से स्वीकार करते है, लेकिन स्वीकार करते जरूर हैं और इसके लिए महिलाओं को अपने निश्चय पर अडिग बने रहना होता है, जब तक स्वीकृति मिल न जाये। मुझे लगता है अब आज़ादी का और चरित्र तय करने का नज़रिया बदल रहा है। अब सडक़ों पर महिला राइडर्स को देखकर खुशी होती है।
हॉकी खिलाडी रही हूं
राइडिंग की शुरुआत बड़ी दिलचस्प है। हॉकी खिलाड़ी रही हूं। एक बार ट्रायल के लिए शहर में ही कहीं जल्दी पहुंचना था, और कोई साधन नहीं था। उस समय घर में एक ही गाड़ी हुआ करती थी। पिताजी घर पर नहीं थे, मां ने कहा बाइक से चले जाती अगर चलाना आता होता। किसी पर निर्भर नही रहना चाहिए। बस उस दिन तो लिफ्ट मांगकर काम चल गया लेकिन जल्दी ही पिताजी से बाइक चलाना सीख लिया। मां-पिता ने समझाया की स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर क्या है और अपनी हदे खुद ही तय करना कितना जरूरी है। ठीक उसी तरह जैसे राइडिंग में ब्रेक लगाना आना ज़रूरी है।