वजन कम करने के लिए शुरू की मुक्केबाजी, एक साल में बन गईं नेशनल चैंपियन

नई दिल्ली. राष्ट्रीय महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में लगातार दूसरी बार लाइट फ्लाइवेट वर्ग (48 से 51 किग्रा) में चैंपियन बनीं रेलवे की अनामिका हुड्डा पहले कुश्ती में भाग्य आजमाना चाहती थीं, लेकिन वजन ज्यादा होने के कारण उन्हें मुक्केबाजी की ओर रुख करना पड़ा। रोहतक की अनामिका ने पत्रिका से विशेष बातचीत में कहा, मेरा वजन ज्यादा था इसलिए मैंने नौ साल की उम्र से बेहतर फिटनेस के लिए स्टेडियम जाना शुरू कर दिया था। मैंने एक महीने तक कुश्ती की ट्रेनिंग की, लेकिन मेरा वजन ज्यादा होने के कारण कोच ने मुझे मुक्केबाजी अपनाने की सलाह दी।

अनामिका के पिता रोहतक में हेल्थ इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं, जबकि उनकी मां हाउसवाइफ हैं। अनामिका ने बताया कि उनके पिता कबड्डी खेला करते थे, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए ज्यादा मौके नहीं मिले। इसलिए जब मैंने खिलाड़ी बनने की ठानी तो उन्होंने हर कदम पर मेरा सपोर्ट किया।

कोच सागरमल धायल ने की काफी मदद

अनामिका रेलवे में द्रोणाचार्य अवार्डी कोच सागरमल धायल के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग करती हैं। उन्होंने बताया कि सागर सर ने मेरी काफी मदद की है। वे मेरी खामियों को सुधारने में मदद करते हैं। उनकी मेहनत है कि रेलवे टीम फिर से नेशनल चैंपियन बनी है।

लड़कों के साथ करती थी अभ्यास

अनामिका ने बताया, वहां ज्यादातर लड़के मुक्केबाजी सीखने आते थे और मैं अकेली लड़की थी तो कोच मुझ पर ज्यादा ध्यान देते थे। मुझे लड़कों के साथ ही अभ्यास करना पड़ता था। एक साल बाद ही मैं जूनियर नेशनल चैंपियन बन गई।

अनामिका ने कहा, मेरा कद अन्य मुक्केबाजों की तुलना में थोड़ा कम है, जिससे मुझे प्रतिद्वंद्वी के जोन में जाकर फाइट करनी पड़ती है। मेरे प्रतिद्वंद्वी लंबे होते हैं तो मैं दूर से उन्हें पंच नहीं मार सकती। मेरा ध्यान हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वी पर दबाव बनाने और उसे अंत तक फाइट में बनाए रखने पर होता है। एक बार प्रतिद्वंद्वी दबाव में आ जाए तो मेरा काम थोड़ा आसान हो जाता है।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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